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________________ संतिणाह-त्थुदी (शांतिनाथ-स्तुति, मालिनी-छन्द) गणहर-किद-पूयं सव्व-लोगस्स सारं, कलिदकरुणभावं संतकामप्पसारं। सुर- मणुयजणाणं पुज्जपादारविंद, सयल-गुण-णिहाणं संतिणाहंणमामि॥1॥ अन्वयार्थ-(सव्व-लोगस्ससारं) सर्वलोक में सारभूत (गणहर-किद पूर्व) गणधरकृत पूजा को प्राप्त (कलिद करुण भावं) करुणाभाव से पूरित (संतकामप्पसारं) काम के प्रसार को शांत करने वाले (सुर-मणुयजणाणं) सुर व मनुष्यजनों के द्वारा (पुज्जपादारविंदं) पूजित चरण कमल वाले (सयल-गुण-णिहाणं) समस्त गुणों के निधान (संतिणाहं णमामि) श्री शांतिनाथ भगवान को नमन करता हूँ। __ अर्थ-सम्पूर्ण लोक में सारभूत गणधर देवों के द्वारा की गयी पूजा को प्राप्त, करुणाभाव से पूरित, काम के प्रसार को शांत करने वाले, देव तथा मानवजनों के द्वारा पूजित चरण कमल वाले तथा सकलगुणों के निधान श्री शांतिनाथ भगवान को मैं नमन करता हूँ। णयण-जुअल-सेढे तिव्व-कारुण्ण-पुण्णं, मणहरमुहसोहं बाल-आइच्च-वण्णं। अतुल-विरिय-जुत्तं, दिव्व-रम्मं सुदेहं, सयल-गुणणिहाणं संतिणाहं णमामि ॥2॥ अन्वयार्थ-[जिनके] (णयणजुअल सेठं) श्रेष्ठ नयन युगल (तिव्व कारुण्ण पुण्णं) तीव्र करुणा से पूर्ण हैं (मणहरमुहसोहं) मनोज्ञ मुख की शोभा (बालआइच्च वण्णं) उगते हुए सूर्य के समान है (दिव्वरम्मं सुदेह) दिव्य रमणीय श्रेष्ठ शरीर (अतुल-विरिय-जुत्तं) अतुल्य बल से युक्त है [ऐसे] (सयल-गुणणिहाणं) समस्त गुणों के निधान (संतिणाहं णमामि) श्री शांतिनाथ को नमन करता हूँ। ___अर्थ-जिनके श्रेष्ठ नयन युगल तीव्र करुणा से आपूरित हैं, जिनका मनोज्ञ मुख उगते हुए सूर्य के समान सुशोभित है, जिनका अद्भुत दिव्य परमाणुओं से रचित रमणीय शरीर अतुल्य वीर्य युक्त है तथा जो अनंत ज्ञानादि समस्त गुणों के निधान हैं, उन शांतिनाथ भगवान को मैं नमन करता हूँ। मयण-णिवदि-सामिं सोलसं तित्थणाहं, भुवण-तिलयरूवं धीर-वीरं गहीरं। पुण भरहं विजित्ता, अप्परूवे पदिठें, सयल-गुणणिहाणं संतिणाहणमामि ॥३॥ अन्वयार्थ-(मयण) कामदेव ( णिवदि सामी) चक्रवर्ती (सोलसं तित्थणाह) 48 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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