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________________ पयत्ता। तयणंतरं विविहं मणोणुकूलं सिद्धतं रइऊण तेण सेयंबरो संपदाओ पवट्टिओ।... कालंतरे तम्हा अणेगा उवसंपदाया वियसिया। जिणधम्मस्स मूलसंघो दिगंबरो अत्थि। तम्हा अण्णं संपदायं छंडिऊण अप्पकल्लाणत्थं दिगंबर-णिग्गंथ-मग्गो हि गणहीयो। पसत्थी भद्दबाहू मुणिणाहो, सुद-पुण्णो आसि संघखेमकरो। गुरुभत्तिजुत्तसिस्सो, सिरिचंदगुत्तो मुणी जयदु॥1॥ वंदित्तु गोम्मटेसं, चंदगिरीए य भद्दबाहु-पदं। सवणबेलगुलखित्ते, रचिदं इमं भद्दबाहु-चरियं ॥2॥ आदिसायरसूरिं, सूरिं महावीरकीत्ति-मुणिपवरं। तवसिं सम्मदिसूरिं, अप्पहिदस्स य पणिवडामि ॥3॥ वर-अंगं व्व वरंगा, तत्थ य जादो वरंग-संपण्णो। रयणो व रयण-वम्मा, चारुकित्ती य कित्तिओ होदु॥4॥ ॥ इदि आयरिएण सुणीलसायरेण विरइदं भद्दबाहुचरियं॥ तुम हमारे गुरु हो, इस कारण हम सभी भक्तिपूर्वक आपकी पूजा-वंदना करेंगे। उपसर्ग मत करो, उपसर्ग मत करो, उपसर्ग मत करो। हम सभी आपकी शरण में आये हैं। इस प्रकार उन्होंने उस देव को उपशांत करके उसकी हड्डियों को लेकर उसमें गुरुबुद्धि करके उसकी पूजा आरम्भ कर दी। उसके पश्चात् मनोनुकूल सिद्धान्त की रचना करके उन्होंने श्वेतपट (श्वेताम्बर) मत स्थापित किया। कालान्तर में उसमें अनेक मत प्रस्फुटित हुए। मूलसंघ दिगम्बर है। अतः सभी कुमत छोड़कर अपने कल्याण के लिए निर्ग्रन्थ मार्ग ही ग्रहण करना चाहिए। प्रशस्ति 1. परिपूर्ण श्रुत के ज्ञाता, संघ का क्षेम करने वाले, मुनिनाथ भद्रबाहु-स्वामी एवं गुरुभक्ति में रत शिष्य श्री चन्द्रगुप्त मुनिराज जयवंत हों।। 2. गोम्मटेश (भगवान् बाहुबली) और चन्द्रगिरि पर स्थित भद्रबाहु स्वामी के भद्दबाहु-चरियं :: 397
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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