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________________ हँसता, क्षणभर में अतिमनोहर चेष्टा करता हुआ, क्षणभर में गम्भीररूप धारण करता हुआ, वह सभी नगरवासियों का प्रिय हो गया। विचक्षणता : एक बार बालक भद्रबाहु अपने मित्रों के साथ अनेक प्रकार के खेलों को खेलता था। कंदुक-क्रीडा में उसके द्वारा एक गेन्द के ऊपर एक गेन्द रखकर (एक साथ) ग्यारह गेंद (गोल पत्थर) रखे गए देखकर सभी मित्र आश्चर्यचकित रह गए। इसी समय चतुर्थ श्रुतकेवली गोवर्धनाचार्य अपने मुनिसंघ के साथ विहार करते हुए वहाँ आये। अपने दिव्यनिमित्त ज्ञान से उन्होंने यह जाना कियह बालक श्रुत-तप-तेज-सत्व से सम्पन्न पंचम श्रुतकेवली होगा। अनन्तर प्रणाम करते हुए उस श्रेष्ठ बालक को अपने पास बुलाकर आचार्य पूछते हैं-हे वत्स! तुम्हारा नाम क्या है? वह बालक कहता है-भगवन्! मेरा नाम भद्रबाहु है। मैं ब्राह्मण हूँ। श्रावकचूड़ामणि श्री सोमशर्मा मेरे पिता और वात्सल्यपूर्णा सोमश्री मेरी माता हैं। समीप स्थित यह कोटिनगर मेरा गृहनगर है। ___बालक की प्रतिभा, वचनकला, विनयवृत्ती तथा प्रज्ञाशीलता को देखकर आचार्य अत्यन्त प्रसन्नभावपूर्वक कहते हैं-हे प्रज्ञ! मैं तुमको अनेक श्रेष्ठ शास्त्रों को सिखाऊँगा। तुम सीखोगे? भद्रबाहु प्रसन्न भाव से स्वीकार करता है। आचार्य-वत्स! अभी तुम्हारे माता-पिता कहाँ हैं ? भद्रबाहु-घर पर, भगवन्! मेरे घर पर चलिए। भद्दबाहुणा सहगच्छंतो गोवड्ढणाइरियो ससंघं तस्स गिहं पत्तो। मुणिसंघं दट्ठण सोमसम्मा परियणेण सह विणयोवयारं किच्चा पुच्छदि-अहो महप्पा! केणं कारणेण अम्हाणं दुवारं पवित्तं किदं तुम्हेहिं। आयरिओ कहेदि-तव पुत्तेण अम्हे एत्थ आणीया। अहं इमं सत्थाणि सिक्खेदुं इच्छामि। अस्स कल्लाणत्थं सो सिक्खिदव्वो। जइ तुम इच्छसि तो अहं इमस्स सत्थसिक्खं दाहामि। किंचि चिंतिऊण तस्स मादु-पिदुहि सम्मदी पदत्ता। तयणंतरं भद्दबाहुं सरक्खणे घेत्तूण आयारादि बारस-अंगपरिपुण्णो, महामहिमो, छत्तीस-गुण-संपण्णो, भव्वजीवाण हिदकरो, मुणिणायगो गोवड्ढणारियो तत्तो ससंघो णिग्गदो! . सिक्खा : ववहार-पडू, वियक्खणबुद्धी संपण्णो सो कुमरो भद्दबाहू आइरिय-पसादेण थोवकालेण सत्थ-पुराण-सिद्धंत-कव्व-आयार-सत्थेसु पारंगदो जादो। सच्चं अस्थि, सेट्ठ-गुरुणो पसादेण विणेया सिग्धं चिय सत्थपारंगदा होति। उत्तं च मूलाचारे 384 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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