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________________ गोम्मटेस - अट्ठगं (गोम्मटेश अष्टक, मालिनी - छन्द) उसहजिण- सुपुत्तं सुणंदाणेत्तरम्मं, णिव-भरह - कणिट्ठ अदि-उत्तुंगदेहं । पउदणपुर - सामिं साहिमाणि गिरिव्वं, भुवण-मउडरूवं गोम्मटेसं णमामि ॥1 ॥ अन्वयार्थ – (उसहजिण - सुपुत्तं ) ऋषभनाथजिन के सुपुत्र (सुणंदाणेत्त रम्मं ) सुनन्दा के नेत्ररम्य (वि- भरहकणिट्ठ) राजा भरत के छोटे भाई (अदि-उत्तुंगद देहं ) अति उच्च देह वाले (पउदणपुर सामिं) पोदनपुर के स्वामी (साहिमाणि गिरिव्वं ) पर्वत के समान स्वाभिमानी (भुवण-मउडरूवं) भुवन के मुकुट स्वरूप ( गोम्मटेसं णमामि गोम्मटेश को मैं नमन करता हूँ । अर्थ — ऋषभदेव के सुपुत्र, माता सुनंदा की आँखों के रम्य, नृपश्रेष्ठ भरत चक्रवर्ती के छोटे भाई, अति उत्तुंग देहधारी, पोदनपुर के स्वामी, पर्वत के समान स्वाभिमानी तथा तीन लोक के मुकुट स्वरूप गोम्मटेश्वर बाहुबली जिनेन्द्र को मैं नमन करता हूँ । लसदि णयणसोह्य तिट्ठिदा णासिकग्गे, लसदि य ओट्ठपंती हासजुत्ता सुरम्मा । लसदि चिउग सेट्ठी कंबुकंठो य कंधो, भुवण-मउडरूवं गोम्मटेसं णमामि ॥2 ॥ -- अन्वयार्थ – [ जिनकी ] ( णासिकग्गे) नासिकाग्र पर ( तिट्ठिदा) स्थित (णयणसोहा) नयन शोभा (लसदि) सुशोभित है ( हासजुत्ता सुरम्मा ) हास्ययुक्त सुरम्य (ओट्ठपंती ) ओष्ठपंक्ति (लसदि) सुशोभित है ( चिउग सेट्ठो) श्रेष्ठ चिबुक (य) और (कंबुकंठो य कंधो) शंख के समान कंठ तथा कंधा (लसदि) सुशोभित है [उन] (भुवण-मउड - रूवं) भुवन के मुकुट स्वरूप ( गोम्मटेसं णमामि ) गोम्मटेश को नमन करता हूँ। अर्थ - जिनकी नासिका के अग्र भाग में स्थित नयनों की शोभा सुशोभित है, जिनकी ओष्ठ - पंक्ति (रेखा) हास्यभावयुक्त सुरम्य और लसित है, जिनका चिबुक (ठोड़ी), शंख के समान कंठ तथा कंधा ( स्कन्ध) अत्यन्त शोभायमान हैं, उन भुवन के मुकुट स्वरूप गोम्मटेश्वर बाहुबली जिनेन्द्र को मैं नमन करता हूँ । गोम्मटेस - अट्ठगं :: 35
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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