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________________ अर्थ-दो सौ से अधिक दीक्षाएँ देनेवाले, सुशिक्षक, पंचविध आचार को पालते हैं और अन्यों से पालन कराते हैं। पण्णासं च चदुम्मासं, किदो देसे पदेसए। धम्मप्पहावणा पुण्णो, चागुववास-संजुदो॥9॥ अन्वयार्थ-(देसे पदेसए) देश-प्रदेश में, (पण्णासं चदुम्मासं) पचास चातुर्मास (धम्मप्पहावणा पुण्णो) धर्म प्रभावना पूर्ण (चागुववास-संजुदो) त्याग उपवास सहित (किदो) किए। अर्थ-देश-प्रदेश में पचास चातुर्मास धर्म प्रभावना पूर्ण व त्याग उपवास सहित किए। पढमो मेरठे णयरे, वीयो य ईसरीपुरे। बाराबंकीइ तदियं, तं पच्छा बावणगजे॥10॥ मांगीतुंगी तदियं, हुम्मचे कुंथलगिरी। गजपंथे य तुंगीए, उज्जते महुरापुरे॥11॥ सम्मेदे पुण रांचीए, कलकत्ता पुरे दुवे। इटावाणयरे भिंडे, जब्बालिपुर-दूरुगे॥12॥ णागपुरे य दाहोदे, डूंगरपुर-लोहारिए। पारसोला पदावे य, उदए बंसवाड़ए ॥13॥ सागवाडाए इंदोरे, रामगंजमंडीसुहे। किसणगडे-वागंजे, जयपुरे य दिल्लीए॥14॥ फिरोजाबाद-णयरे, टीकमगढ़-चंपए। कासीए छत्तरपूरे, बड़वाणी णरवालिए15॥ उदयपुरे खम्मेरे, मुंबईए य लासुणे। सेठे कुंजवणे दोण्हं, इच्चले कोल्हापुरे16॥ अन्वयार्थ-(पढमो) प्रथम चातुर्मास (मेरठे णयरे) मेरठ नगर में, (वीयो य ईसरी गामे) दूसरा सम्मेदशिखर के सम्मुख ईसरी बाजार में, (तदियो) तीसरा (बाराबंकीइ) बाराबंकी में (तं पच्छा) उसके बाद (बावणगजे) बावनगजा, (बेलगोले) श्रवणबेलगोला, (हुम्मचे) हुम्मचा, (कुंथलगिरी) कुंथलगिरी (गजपंथे) गजपंथा, (तुंगिए) मांगीतुंगी, (उज्जंते) गिरनारजी, (महुरापुरे) मथुरा, (सम्मेदे) सम्मेदशिखर, (रांचीए) रांची, (कलकत्तापुरे दुवि) कलकत्ता में दो (पुण) फिर (इटावा णयरे) सम्मदि-सदी :: 357
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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