SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किससे क्या होता है? चिंतादो णस्सदे बुद्धी, दुक्खादो णासदे तणू। आलस्सेण हि लच्छी य, पावेहिं पुण्ण खिजदि ॥3॥ अन्वयार्थ-(चिंतादो बुद्धी णस्सदे) चिंता से बुद्धि नष्ट हो जाती है। (दुक्खादो तणु णासदे) दुःख से देह नष्ट हो जाती है। (आलस्सेण हि लच्छी) आलस्य से लक्ष्मी (य) और (पावेहिं पुण्ण खिजदि) पाप से पुण्य क्षय हो जाता है। भावार्थ-चिंता से बुद्धि नष्ट हो जाती है, दुःख से देह नष्ट हो जाता है, आलस्य से लक्ष्मी और पाप से पुण्य का क्षय हो जाता है। यही धर्मप्रभावना है ससत्ती सत्तिवं लोगं, साभाए भासवं परं। सोदएणुदितं कुज्जा, एसा धम्मप्पहावणा ॥54॥ अन्वयार्थ-(ससत्ती सत्तिवं लोगं) स्वशक्ति से लोक को शक्तिवान (साभाए भासवं परं) स्वप्रकाश से दूसरों को प्रकाशवान (सोदएणुदितं) स्व-उदय से दूसरों का उदय (कुज्जा) करे (एसा धम्मप्पहावणा) यही धर्मप्रभावना है। भावार्थ-स्वशक्ति से लोक को शक्तिवान, स्वप्रकाश से दूसरों को प्रकाशवान तथा स्व-उत्थान के साथ दूसरों का भी उत्थान करें, यही सच्ची धर्म प्रभावना है। शान्ति का साधन चरणं करणं सम्मं, अप्पं वा जिणदंसणं। सवणं सेट्ठ-सदस्स, वत्थुदो संति-साहणं ॥55॥ अन्वयार्थ (सम्मं चरणं करणं) सम्यक् आचार विचार (अप्पं वा जिणदंसणं) आत्मदर्शन व जिनदर्शन (सेट्ठसद्दस्स) श्रेष्ठ शब्द का (सवणं) सुनना (वत्थुदो) वस्तुतः (संति-साहणं) शान्ति का साधन है। भावार्थ-सम्यक् आचार-विचार, आत्मदर्शन अथवा जिनदर्शन, श्रेष्ठ शब्द का श्रवण वस्तुतः शान्ति का साधन है। मनुष्य ही धर्म योग्य है देवदा बिसयासत्ता, णारया दुक्खदूसिदा। णाणहीणा य तेरिच्छा, धम्मजोग्गा हिमाणवा 156॥ अन्वयार्थ-(देवदा विसयासत्ता) देवता विषयासक्त हैं (णारया दुक्खदूसिदा) नारकी दुःख से दूषित हैं (णाणहीणा य तेरिच्छा) तिर्यंच ज्ञानहीन हैं (धम्मजोग्गा हि माणवा) मनुष्य ही धर्म योग्य हैं। 350 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy