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________________ ऐसा जीवन नहीं चाहते • कुशलव्यक्ति सफल होता है • वह पुरुष उत्तम है • युग नहीं भाव बदलो • ज्ञानियों का चिन्तन • चारित्र से आदर्श • निर्मोहता से शुद्धि होती है • मूल पर ध्यान दो • पहले देख लें • दृष्टि का फेर • अज्ञानी आनन्द नहीं पाता • चिन्ता नहीं चिन्तन करो• व्रतों का पालन करो • आनन्द, सुख व दुःख • समस्या व दुःख में अन्तर • महानता दुर्लभ है • मर्यादा आवश्यक है • श्रेष्ठतीर्थ है मनःशुद्धि • तो कार्य सफल होता है • कैसा व्यक्ति सन्मान पाता है? • सिद्धि अन्यथा नहीं होती • योग को साधो • अल्प व शुद्धभोजन हो • आश्चर्य की बात • किससे किसकी शद्धि • धर्मात्मा की प्रवृत्ति • परतन्त्र-स्वतन्त्र • आचार सर्वोपकारी है • सद्भावना श्रेष्ठ है • सुख आत्मास्थित है • वह वांछित फल नहीं पाता • पहले नैतिक बनो • सिद्धि के बिना प्रसिद्धि से क्या लाभ? • प्रवृत्तियों की वृत्ति • आत्मधर्म सुखप्रद है • धर्म आदेय है • बिन्दु से सिन्धु भर जाता है • ध्यान के लिए शान्तचित्त चाहिए • संयम सर्वथा लाभकारी है • सहिष्णुता से एकता होती है • लक्ष्यनिर्धारण के पूर्व • किससे क्या होता है? • यही धर्मप्रभावना है • शान्ति का साधन • कार्यसिद्धि के लिए • वह जगत पूज्य होता है • जैन शासन वर्धमान हो सम्मदि-सदी (सन्मति-शदी) . 353-378 भद्दबाहु-चरियं (भद्रबाहु चरित्र) 379-400 मंगलाचरण • भद्रबाहु का जन्म • भद्रबाहु का बचपन • भद्रबाहु की विलक्षणता • भद्रबाहु की शिक्षा • भद्रबाहु की दीक्षा • चन्द्रगुप्त की जिनदीक्षा • चन्द्रगुप्त के द्वारा 16 स्वप्न • उत्तरापथ में दुर्भिक्ष • भद्रबाहु की समाधि • संघभेद • प्रशस्ति बारह भावणा (बारह-भावना) 401-408 अठाईस
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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