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________________ समान, उनसे अनर्गल बातचीत करने में मूक (गूंगे) के समान, गीत या आकर्षक शब्द सुनने में बहिरे के समान तथा स्त्रियों के प्रति आकर्षण बढ़ाने वाले विचारों में असंज्ञी के समान व्यवहार (आचरण) करते हैं, वे ज्ञानी मुनिजन उसी भव या अन्य भव से तथा गृहस्थ जन मुनिव्रत धार उसी भव या परंपरा से मोक्षमार्ग में सिद्ध होते हैं अर्थात मुक्ति प्राप्त करते हैं। 'चांचल्यरहितोऽहम्।' जीव का लक्षण उवओगमओ जीवो, सुद्धासुद्धेहिं भासिदो दुविहो। वीओ सुहो य असुहो, सुद्धवओगो उवादेज्जो॥11॥ अन्वयार्थ-(जीवो उवओगमओ) जीव उपयोगमय है [उपयोग] (सुद्धासुद्धेहिं) शुद्ध व अशुद्ध के भेद से (दुविहो) दो प्रकार का (भासिदो) कहा गया है (वीओ सुहो य असुहो) दूसरा शुभ व अशुभ है [जबकि] (सुद्धवओगो उवादेओ) शुद्धोपयोग उपादेय है। अर्थ-उपयोग जीव का लक्षण है। वह शुद्धोपयोग व अशुद्धोपयोग के भेद से दो प्रकार का है। दूसरा अशुद्धोपयोग शुभ व अशुभ भेद वाला है, जबकि शुद्धोपयोग उपादेय है। व्याख्या-ज्ञान-दर्शन रूप चैतन्य का अनुविधायी परिणाम उपयोग कहलाता है (सर्वार्थसिद्धि)। उपयोग जीव का लक्षण है, जैसा कि आचार्य गृद्धपिच्छ ने तत्त्वार्थ सूत्र में कहा है-'उपयोगो लक्षणं (2/8)। ज्ञान-दर्शन वाला ही जीव है, इनसे युक्त ही जीव की भाव-दशा पाई जाती है। शुद्धोपयोग व अशुद्धोपयोग की अपेक्षा उपयोग दो प्रकार का है। शुद्धोपयोग निज शुद्धात्मा के अनुभव रूप है। अशुद्धोपयोग दो प्रकार का है- 1. शुभोपयोग, 2. अशुभपयोग। 1. शुभोपयोग-देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, आत्मचिंतन रूप शुभ परिणामों (भावों) को शुभोपयोग कहते हैं, इससे सुखदायक पुण्यबंध होता है। 2. अशुभोपयोग-विषय-कषायरूप अशुभ परिणामों को अशुभोपयोग कहते हैं, इससे दुःखदायक पाप का आस्रव-बंध होता है। ये दोनों संसार के कारण हैं। अशुभोपयोग सर्वथा हेय है। हेय होते हुए भी शुभोपयोग कथंचित उपादेय है। मोक्ष का साक्षात् कारण होने से शुद्धात्मानुभूतिरूप शुद्धोपयोग ही उपादेय है। कर्म व कर्मफल चेतना हेय है, ज्ञान चेतना उपादेय है। ‘उपयोगस्वरूपोऽहम्।' मूढजन सुख-दुःख भोगते हैं पस्स! पहूणो णाणे, लोगालोगं च भासदे सम्म। तो वि पहू णियलीणो, मूढा भुंजंति सुह-दुक्खं ॥12॥ 254 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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