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________________ दिये हैं। देह की उत्पत्ति के कारण और उसकी चर्चा करते हुए शरीर की सत्यता को उजागर किया है। __ हम जीवन के कई साल गुजार चुके हैं, पर आज तक इस बिन्दु पर चिन्तन नहीं किया कि हमारी समग्र दिनचर्या कैसी हो? यहाँ इस विषय पर न केवल धार्मिक, नैतिक, सामाजिक चर्चा की है, बल्कि वैज्ञानिक मनोवैज्ञानिक और चिकित्सकीय चर्चा भी की है। जो दैनिकचर्या आचार्यश्री ने निर्धारित की है चिकित्सा विज्ञान भी उसकी पुष्टि करता है। नियमित व्यायाम, आसन, प्राणायाम से शरीर पुष्ट होता है, बुद्धि बढ़ती है, ओज बढ़ता है, फेफड़ों को शुद्ध वायु मिलने से रक्तशुद्धि होती है। कहते है 'नित्य दो मिनट रोना (आँसू बहाना) चार मिनट दौड़ना, आठ मिनट हँसना और कम से कम सोलह मिनट मुस्कराना...ये सब प्रकार की बीमारियों का दूर भगाना है।' पुस्तक के अन्तिम पाँचवें चरण में विविध वृत्त शीर्षक से कई प्रेरक बोधक और भावोद्वेलक कथाओं का संयोजन किया है। पुस्तक की विशेषता यह है कि यह एक ऐसे बाल ब्रह्मचारी साधु द्वारा विरचित है जो स्वयं ब्रह्मचर्य का साक्षात् रूप हैं। जहाँ इस पुस्तक की विषय वस्तु शास्त्र समारम्भ है, वहीं इसमें इनके अनुभवों का पुट भी है। धरती के देवता-आचार्यश्री की यह कृति औपन्यासिक शैली में लिखी गयी है। जो अपने आप में बहुमान्य विधा है। धरती के देवता के रूप में यहाँ आचार्य श्री ने सदैव ज्ञान, ध्यान, तप में लीन रहने वाले तथा समस्त परिग्रहों से रहित 28 मूलगुणों का पालन करने वाले दिगम्बर साधु का लक्ष्य करके लिखा है। एक जैनेतर व्यक्ति को दिगम्बर साधु कैसे होते हैं और ऐसे क्यों रहते हैं? आदि जिज्ञासाओं का समुचित समाधान करने के लिए दुनिया में इससे बेहतर पुस्तक आज तक मैंने तो नहीं देखी। चिन्तन यात्रा-व्यवस्थित जीवन जीने वाले व्यक्ति, विचारक, लेखक, कवि अपनी दैनन्दिनी अवश्य लिखते हैं। इसी क्रम में चिन्तन यात्रा आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज की यात्रा के दौरान होने वाले चिन्तन और अनुभवों की संक्षिप्त प्रस्तुति है। यह कृति जहाँ उनके विशुद्ध, पवित्र एवं स्वच्छ विचारों का प्रतीक है वहीं दूसरी ओर तत्कालीन घटित घटनाओं का ऐतिहासिक साक्ष्य भी है। 26 जनवरी गणतन्त्र दिवस के विचार, लम्हों ने खता की सदियों ने सजा पायी, अपने विचार, मित्रता किससे करूँ तथा विविध मुक्तकों का संकलन इस कृति का प्रमुख आकर्षण है। इस कृति को पढ़ने से प्रतिदिन अपनी दैनन्दिनी लिखने की प्रेरणा हमें अवश्य मिलती है। आचार्य गुरुवर सन्मतिसागरजी के साथ बिताये गए क्षणों के प्रसंग दिल को छू जाते हैं। अठारह
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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