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________________ 'चकार' से मन्त्र-तन्त्र और ज्योतिष का ग्रहण भी विवेकपूर्वक करना चाहिए। इन सोते हुओं को जगा देना चाहिए विजत्थी सेवगो पहिओ, छुहत्तो भयकादरो। भंडारी पडिहारी य, सत्त-सुत्ता य बोद्धउ॥154॥ अन्वयार्थ-(विजत्थी) विद्यार्थी (सेवगो) सेवक (पहिओ) पथिक (छुहत्तो) क्षुधातुर (भयकादरो) भयभीत (भंडारी) कोषाध्यक्ष (य) और (पडिहारी) [इन] (सत्त-सुत्ता बोद्धउ) सात सोते हुओं को जगा देना चाहिए। भावार्थ-विद्यार्थी, सेवक-नौकर, पथिक-राहगीर, भोजन करने के लिए क्षुधातुर, भयमुक्त करने हेतु भयभीत मनुष्य, कोष की सुरक्षा हेतु कोषाध्यक्ष को तथा देश की, नागरिकों की सुरक्षा के लिए पुलिस-सैनिक, इन सात को यदि ये सो रहे हों तब भी जगा देना चाहिए। इन्हें सोने ही दो सप्पो णिवो य दुट्ठो य, विहिं बालगो तहा। गामसिंहो विमूढो य, सत्त-सुत्ता ण बोद्धउ॥155॥ अन्वयार्थ-(सप्पो) सर्प (णिवो) राजा (दुट्ठो) दुष्ट (विहिं) बर्र (बालगो) बालक (तहा) तथा (गामसिंहो) ग्रामसिंह [कुत्ता] और (विमूढो) मूर्ख [इन] (सत्त-सुत्ता ण बोद्धउ) सात सोते हुओं को नहीं जगाना चाहिए। भावार्थ-सर्प, राजा, दुर्जन व्यक्ति, बर्र-ततैया, बालक, दूसरों का कुत्ता तथा मूर्ख अथवा पागल मनुष्य इन सात सोते हुओं को जगाना नहीं चाहिए, क्योंकि ये जागकर महा-अनर्थ भी कर सकते हैं। कहीं से आये कहीं है जाना एगरुक्खे समारूढा, णाणावण्णा विहंगमा। दिसदिसासु उड्डेति, ऊसाए इदि णिच्छयं॥156॥ अन्वयार्थ-(एगरुक्खे समारूढा) एक वृक्ष पर बैठे हुए (णाणावण्णा विहंगमा) नाना वर्ण के पक्षी (ऊसाए) प्रातःकालीन बेला में (दसदिसासु) दश दिशाओं में (उड्डेति) उड़ जाते हैं (इति) यह (णिच्छयं) निश्चित है। भावार्थ-एक वृक्ष पर बैठे हुए विविध वर्गों के विविध पक्षी प्रात:काल होते ही विविध दिशाओं में उड़कर चले जाते हैं, यह निश्चित है, अब इसमें दुःख की क्या बात है अर्थात् ऐसा तो होता ही रहता है। जहाँ संयोग होगा, वहाँ वियोग भी अवश्य होगा। इसलिए किसी के वियोग में क्या दु:ख करना। 182 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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