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________________ दीवो हि भक्खदे अंधं, कज्जलं हि पसूयदे । जारि भक्खदे अण्णं, बुद्धी हवदि तारिसी ॥139 ॥ अन्वयार्थ - (दीवो हि अंधं भक्खदे) दीपक अन्धकार खाता है (हि) इसलिए ( कज्जलं पसूयदे) काजल उत्पन्न करता है [ क्योंकि ] ( जारिसं भक्खदे अण्णं) जिस प्रकार का अन्न खाता है (बुद्धी हवदि तारिसी) बुद्धि उसी प्रकार की हो जाती है। भावार्थ - यहाँ दीपक का उदाहरण देते हुए समझाया गया है कि दीपक अन्धकार को खाता है इसलिए काजल (काला धुआँ) उगलता है। यही बात मानव जाति पर लागू होती हैं कि मानव जैसा भोजन करता है वैसी ही उसकी बुद्धि हो जाती है। एक लोकोक्ति भी है जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन; जैसा पीवे पानी, वैसी बोले बानी। अतः आत्महितेच्छुओं को भोजन और पानी की शुद्धता का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए । .... मांस के समान हैं मंसं व णवणीदं च, हट्ट - भोयण-भक्खणं । रत्तं वागालिदं णीरं, मंसंव णिसिभोयणं ॥140 ॥ अन्वयार्थ – (णवणीदं) नवनीत (च) और (हट्ट - भोयण भक्खणं) बाजार का भोजन खाना (मंसंव) मांस के समान है ( रत्तं वागालिदं णीरं) अनछना जल खून के समान है [ तथा] (मंसंव णिसिभोयणं) रात्रि भोजन मांस के समान है। भावार्थ - तैयार होने के अन्तर्मुहूर्त (अड़तालीस मिनिट) बाद नवनीतमक्खन मांस के समान हो जाता है, क्योंकि उसमें अनन्त जीव राशि उत्पन्न हो जाती है। बाजार का भोजन इसलिए मांस के समान है क्योंकि उसमें शुद्धि - अशुद्धि, शाकाहार-मांसाहार और जीवों की रक्षा का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा जाता है। बिना छने जल में अनन्तानन्त सूक्ष्म कीटाणु होते हैं, अतः वह खून के समान कहा गया है। रात्रि में अनन्त छोटे-छोटे जीव- कीटाणुओं का संचार अत्यधिक बढ़ जाता है तथा सूर्यास्त के कारण पर्यावरण भी बदल जाता है, इसलिए रात्रि - भोजन मांस के समान है। इनका भलीभाँति त्याग करना चाहिए । 1 ...गुणाधिकता मंसा दसगुणं धण्णं, धण्णा दसगुणं फलं । फला खीरं च खीरादो, घिदं जलं गुणाहियं ॥141 ॥ अन्वयार्थ - (मंसा दसगुणं धण्णं) मांस से धान्य में दस गुण ( धण्णा दसगुणं फलं) धान्य से फल में दस गुण (फला खीरं) फल से दूध में (खीरादो घिदं) दूध से घी में [तथा ] (जलं) जल में (गुणाहियं) गुणाधिक होता है। लोग - णीदी :: 177
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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