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________________ (विजुत्तेहिं) वियुक्त होने पर (वा) अथवा (बहुलके दुक्खे जादे) बहुत दु:ख के उत्पन्न होने पर (एगा) एक (धिदी) धृति (सेयकरी) कल्याणकारी है। भावार्थ-पुत्र-पुत्रियाँ, स्त्री, सम्बन्धियों और धन से वियुक्त अर्थात् रहित हो जाने पर अथवा एक साथ भयंकर दुःख आ पड़ने पर एक धृति भावना अर्थात् धैर्य धारण करना ही कल्याणकारी सुखकारी है, अन्य कोई नहीं। आत्म प्रशंसा अहितकर परेण परिविक्खादो, णिग्गुणो वि गुणी हवे। सक्को वि लहुगं जादि, स-गुण-गाणेहि सयं ॥93॥ अन्वयार्थ-(परेण परिविक्खादो) दूसरों के द्वारा प्रशंसा किए जाने से (णिग्गुणो वि गुणी हवे) निर्गुणी भी गुणी हो जाता है [तथा] (सयं) स्वयं (स-गुणगाणेहिं) स्व-गुणों का कथन करने से (सक्को वि) इन्द्र भी (लहुगं जादि) लघुता को प्राप्त हो जाता है। भावार्थ-दूसरे लोगों के द्वारा बार-बार प्रशंसा किए जाने से निर्गुण मनुष्य भी गुणवानों की श्रेणी में गिना जाने लगता है, किन्तु इसके विपरीत स्वयं अपने मुख से अपनी प्रशंसा करने से महागुण सम्पन्न इन्द्र भी लघुता को प्राप्त हो जाता है। अत: अपने मुख से अपनी प्रशंसा नहीं करनी चाहिए। धन क्षय होने पर तेजो लज्जा मदी माणं, सच्चं णाणं च पोरिसं। खाई पूया कुलं सीलं, पजहंति धणक्खए॥4॥ अन्वयार्थ-(तेजो लज्जा मदी माणं सच्चं णाणं च पोरिसो खाई पूया कुलं सीलं) तेज, लज्जा, मति, मान, सत्य, ज्ञान, पौरुष, ख्याति, पूजा, कुल और शील [मनुष्य को] (धणक्खए) धनक्षय होने पर (पजहंति) छोड़ देते हैं। भावार्थ-मनुष्य का धन क्षय होने पर उसके तेज, लज्जा, बुद्धि, स्वाभिमान, सत्यवादिता, ज्ञानशीलता, पौरुष, ख्याति, पूजा, कुल और शील आदि गुण धीरेधीरे नष्ट हो जाते हैं। धन के सद्भावमें जिस तरह गुण-सम्पन्नता सम्भव है, धन के अभाव में उस तरह की गुणसम्पन्नता अत्यन्त दुर्लभ है। __ ऐसी वाणी बोलिए कजं हिदं मिदं सेठें, सव्वसत्त-सुहायरं। मधुरं वच्छलं वक्कं, वत्तव्वं सज्जणेहि य॥95॥ अन्वयार्थ-(कज्जं हिदं मिदं सेठं) कार्यकारी, हित, मित, श्रेष्ठ (सव्वसत्त लोग-णीदी :: 161
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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