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________________ अन्वयार्थ – (रत्ति-भोयण वज्जणा ) रात्रि भोजन त्याग से ( इत्थीओ) स्त्रियाँ (अंजणा सुप्पहा णीली चेलणा चन्दणा तहा सीदा व होंति) अंजना, सुप्रभा, नीली, चेलना, चन्दना तथा सीता के समान होती हैं । अर्थ - रात्रि भोजन त्याग से स्त्रियाँ अंजना, सुप्रभा, नीली, चेलना, चन्दना तथा सीता के समान होती हैं । आइच्चे विलयं जादे, जे भुंजंति य भोयणं । मयत्त विहीणा हि, पसूओ ते ण संसओ ॥5॥ अन्वयार्थ—(आइच्चे विलयं जादे) सूर्य के छिप जाने पर (जे) जो (भोयणं) भोजन (भुंजंति) खाते हैं (ते) वे ( मणुयत्त विहीणा) मनुष्यपने से रहित (पसूओ) पशु ही हैं (ण संसओ) इसमें संशय नहीं है। अर्थ – सूर्य के छिप जाने पर जो मनुष्य भोजन खाते हैं, वे मूढ़ मनुष्यपने से रहित पशु ही हैं, इसमें संशय नहीं है । रोग - दालिद्दसंजुत्ता, धण - बंधूविवज्जिदा । अंगहीणा कुही कोही, भवंति रत्ति भोयणा ॥16 ॥ - अन्वयार्थ – [ मनुष्य ] ( रोग-दालिद्द संजुत्तं) रोग, दारिद्र्य संयुक्त (धणबंधू विवज्जिद) धन- - बंधु विवर्जित ( अंगहीणं) अंगहीन ( कुही) खोटी बुद्धि वाले [ तथा] ( कोही) क्रोधी ( रत्तिभोयणा) रात्रि भोजन करने से (भवति) होते हैं । अर्थ - मनुष्य रोग, दारिद्र्य संयुक्त, धन-बंधु विवर्जित, अंगहीन, खोटी बुद्धि वाले तथा क्रोधी रात्रि भोजन करने से होते हैं । रत्ति - भोयणपावेण, दुग्गदिं जंति जंतुणो । कुक्कुर - घूग-मज्जार, कीड - कागादि जोणीसु ॥7 ॥ - अन्वयार्थ – (जंतुणो) जीव समूह ( रत्तिभोयणपावेण ) रात्रि भोजन के पाप से (कुक्कुर - घूग - मज्जार कीड - कागादि जोणीसु) कुत्ता, उल्लू, बिल्ली, कीट, कौआ आदि योनियों में जाते हैं । अर्थ - जीव समूह रात्रि भोजन के पाप से कुत्ता, उल्लू, बिल्ली, कीट, कौआ आदि योनियों में तथा नरक - तिर्यंच आदि दुर्गति को जाते हैं I डागिणी - भूदसप्पादि, पेतादिसु कुजोणीसु । ते जायंति जे भुंजंति, रत्तीए भोयणं णरा ॥8 ॥ अन्वयार्थ - ( जे गरा) जो मनुष्य ( रत्तीए भोयणं) रात में भोजन खाते हैं (ते) वे (हि) निश्चित ही (डागिणी भूद सप्पादि पेतादिसु कुजोणीसु जाएदि ) रत्तिभोयण - चाग- पसंसा :: 117
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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