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________________ अन्वयार्थ-(जुण्णे उच्चे य तिखंडमए) पुराने, ऊँचे व तीन खंड वाले (विदिए) दूसरे (जिणिंदभवणे) जिनेन्द्रभवन में (अदिसयवंतो पासो) अतिशयकारी पार्श्वनाथ (पोम्मो) पद्मप्रभ (पासादि) पार्श्वनाथ आदि के जिनबिंब (सोहंति) शोभित है। अर्थ-पुराने, ऊँचे व तीन खंड वाले दूसरे जिनालय में क्रमशः अतिशयकारी पार्श्वनाथ, पद्मप्रभ व पार्श्वनाथ आदि के जिनबिंब शोभित है। अस्स विदीए खंडे अणेगबिंबेसु अस्थि मुणिमुत्ती। दक्खिणभागे एगो अइपाईणो जिणिंद-बिंबोत्ति॥5॥ अन्वयार्थ-(अस्स) इस दूसरे जिनालय के (विदीए खंडे) दूसरे खंड पर (अणेगबिंबेसु) अनेक जिनबिंबों के मध्य (मुणिमुत्ती) मुनिराज की मूर्ति (अत्थि) है (दक्खिणभागे) दक्षिणभाग में (एगो अइपाईणो) एक अतिप्राचीन (जिणिंद-बिंबोत्ति) जिनेन्द्रबिंब है। __ अर्थ-इस दूसरे जिनालय के दूसरे खंड पर अनेक मूर्तियों के बीच एक मुनिराज की मूर्ति है, दक्षिणभाग में एक अतिप्राचीन जिनेन्द्रबिंब भी है। कट्ठबिरइदे तिदिए जिणिंदभवणम्मिणेमिणाहादि। भूदवलिस्स य मुत्ती अधरे चदुम्मुहो बिंबो॥6॥ अन्वयार्थ-(कट्ठबिरइदे तिदिए) तीसरे लकड़ी से निर्मित तीसरे (जिणिंदभवणम्मि) जिनालय में (णेमिणाहादि) नेमिनाथ आदि (य) और (भूदवलिस्स मुत्ती) आचार्य भूतबलि की मूर्ति तथा (अधरे चदुम्मुहो बिंबो) अधर में चतुर्मुख जिनबिंब विराजमान हैं। अर्थ-लकड़ी से निर्मित तीसरे जिनालय में नेमिनाथ आदि और आचार्य भूतबलि की मूर्ति हैं तथा अधर में चतुर्मुख जिनबिंब विराजमान हैं। छक्खंडागमगंथं अस्सिं णयरम्म विरइदं सेठें। पुप्फस्स पेरणादो भूदबलिणा पण्णभावेण ॥7॥ अन्वयार्थ-(छक्खंडागमगंथं सेठं) श्रेष्ठ षट्खंडागम ग्रन्थ (अस्सिं णयरम्मि) इसी नगर में (पुप्फस्स पेरणादो) आचार्य पुष्पदन्त की प्रेरणा से (भूदबलिणा पण्णभावेणं) आचार्य भूतबलि द्वारा प्रज्ञभावों से (विरइदं) रचा गया। अर्थ- श्रेष्ठ षट्खंडागम ग्रंथ इसी नगर में आचार्य पुष्पदंत की प्रेरणा से आचार्य भूतबलि द्वारा प्रज्ञभावों से रचा गया। अज वि जुण्णो थंभो, अत्यत्थि हत्थलिहिदगंथो वि। अदो जिणवयणस्स खेत्तं, पुजदु वंददु सदा भव्वा ॥8॥ अंकलेस्सट्ठगं :: 107
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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