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________________ 36 संघो विहार-गद-णंद-कचे अडूलं ओरंग-एलुर-पुरम्हि पवास-वासं। वंदेज्ज तित्थ-अणुतित्थ-छिछक्क काले सो गोम्मटेस-पाहु-चादुरमास चिट्ठ॥36॥ संघ विहार करता हुआ नांदगांव, कचनेर, आडूल, औरंगाबाद, एलोरा आदि नगरों में प्रवास को प्राप्त अनेक तीर्थों की वंदना को प्राप्त 1966 में गोम्मटेश प्रभु के चरणों में चातुर्मास के लिए स्थित हो जाता है। 37 बिंझासिरी-अचल-सासद-रम्म-मोल्लं णेदूण ताव सजणाण तवेसु सम्म। पासाण-हारिद-वणप्फदि-संत-सव्वे आगच्छमाण-तवसीण सुणंदएज्जा॥37॥ विन्ध्यश्री अचल एवं शाश्वत रम्य मूल्य को लेकर यहाँ आगत तपसी तप युक्तजनों के भली प्रकार से पाषाण तथा वनस्पतियाँ संत की तरह शान्त सभी तपों में लीन जनों के लिए आनंदित करती हैं। 38 सा अंचलादु तवसीण सुछत्त-छायं सीदं णिवारदि सदा उसणे वि वाउं। दाणं च किट्ट किसगाण किसिल्ल-लाहं णिच्चं कुणेदि सुदमाण-सुदाण कंतिं ॥38॥ वह विन्ध्यश्री अपने अंचल से छत्र रूप छाया करती तपस्वियों के लिए। वह शीत निवारण करती एवं उष्ण में वायु का दान करके कृष्ण कर्मों के क्षय वालों तथा कृषकों को भी लाभ पहुँचाती है। सो ठीक कांति महावीरकीर्ति की कान्ति को श्रुत रूप सुत के लिए ऐसा दान करती ही है। 39 णंगोम्मटेस-महणिज्ज-सुतुंग-बिंबो। छासट्टि-मत्थग-महा अहिसेग-कत्तुं। आकस्सएंति तवसीण सुसम्मदीणं अप्पेग संघ-जण-जुत्त-सुपाद-पत्तं ॥39॥ सन् 1966 के महा मस्तकाभिषेक करने लिए मानो गोम्मटेश की महनीय सम्मदि सम्भवो :: 95
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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