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________________ दसटोण्य के दिन ओम बालक गणवेश युक्त मांगलिक (सौभाग्यवती) नारियों के मधुरांग गीत संगीत में जयमाला माता को ओम की जयमाला धारण कराई जाती है सो ठीक ‘ओं' तो ओम अ अ आ उ म रूप अ सि आ उ सः नमः की जाप कराता है यह स्व और पर से नय शास्त्र का आलोक देता है। 11 पत्तेग दिण्ण समयो समयं दएज्जा चालीस दिण्ण समयागद गेहि सव्वा आभूसणाहि सहिदाहि सुवज्ज-वज्जं गीदं सुगीद जिण-भत्ति अपुव्व सहूं11॥ यद्यपि प्रत्येक दिवस समय विशुद्ध आत्म दृष्टि वाला समय आगम मार्ग को दर्शा रहा था। चालीसवें दिन गृहणियाँ वहाँ आती आभूषणों से सहित वे गाजे बाजे पूर्वक गीत सुगीत एवं जिन भक्ति की अपूर्व श्रद्धा को लिए हुए थीं। 12 थालग्गि-सव्व-भगिणीउ बुआ वि मोसी चंदादि-चंदवदणी सुग-वेस-मुत्ती। गाएंति गीद-महुराणि पसंत-ओमो ओमं ममं च परिचत्त-कुलं जयं णो॥12॥ बालाएँ अग्रणी, बहिनें, बुआ, मोसी आदि सभी चन्द्रमुखी शुक वेशमूर्ति मधुर गीत गाती हैं। वे ओम को ले जाती हुई मानो यही गा रही थीं कि 'ओं' मम-ममत्व (जय के ममत्व) एवं कुल के ममत्व नहीं छोड़ना। जिण-दसणं 13 गेहे जिणे अरिह आदि जिणेस पासो अंतिल्ल सम्मदि महा पडिबिंब वीरो। तेसिंच अग्गदय णेत्त णिमील जुत्तो किंचि थि कुव्वदि स लेयणएहि पाणं॥13॥ जिनगृह में अर्हत् आदि, प्रभु पार्श्व और अंतिम तीर्थकर सन्मति की उत्तम प्रतिमाएँ वीर रूप थीं। जब वह उनके समक्ष लाया जाता तब नेत्र निमीलित था, जैसे ही जागा तो नेत्रों से किंचित् उनका पान करता है। सम्मदि सम्भवो :: 57
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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