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________________ पियारो पियो रूवओ देह - सारो अगारे ठिओ अज्झदे वित्त धारं । सदा सेवगो साहु संताण लालो कुमारो वयो कंत कंताण बालो ॥26॥ इधर प्यारे लाल प्रिय रूप वाला कुमार वय वाला बालक अपनी देह छवि युक्त कान्त कान्ताओं का प्रिय लाल-लाला जहाँ अध्ययन में वित्तधार (व्यापार मन्त्र) को पढ़ता वहीं पर अगार स्थित सदा साधु संतों का सेवक बना रहता है। 27 एटादि हाथरह-टूंडला-आगराए सेट्ठी - जणा वि दिलही वि फिरोजवादे । अत्थे गुणीण कुमराण कुमारिगाणं पस्सेविदूण परिणेज्ज सुइच्छमाणा ॥27॥ एटा, हाथरस, टँडला, आगरा, दिल्ली, फिरोजाबाद आदि के श्रेष्ठी जन अर्थ में (व्यवसाय में) रत गुणी कुमारों को देखकर उनके परिणय हेतु कुमार कुमारियों की इच्छा करने वाले थे । 28 सेठी हरप्परयसाद-णियं पितुं च सीयं च राम ववसाय-समाज-माणं । रक्खेदि लोग ववहार - समग्ग-खेत्ते सामा सरुव ववसायय हाथरासे ॥28॥ श्रेष्ठी हर प्रसाद अपने पितुश्री सीता राम के व्यवसाय एवं समाज के मान की रक्षा करते हैं । वे व्यापार एवं व्यवहार समग्र क्षेत्र में बढ़ाते हैं। इधर प्यारे के भाई श्याम स्वरूप अपना व्यापार हाथरस में बढ़ाते हैं । 29 अत्थेव सम्म-जि-भत्ति - गुणी पियारे गामे वसेदि ववसाय कुसग्ग-लाला । लालिच्च लाल जयमाल सुपेम्म माला माघे हु सुक्क सदमी पणचाण संबे ॥29॥ माघ शुक्ला सप्तमी सं. 1995 सत्ताईस जनवरी सन् 1938 शुक्रवार में लालित्य से पूर्ण यह प्यारेलाल जयमाला के प्रेम की माला बना । यह व्यवसाय में कुशाग्र, सम्यक् जिन भक्ति गुणी ग्राम में ही रहता है । 50 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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