SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 40 सम्मदी सम्मदी सारा, समया सुद अंगिणी। सुण्णाणी सुददायण्हू, सुकव्वा कव्व-मंथिणि 140॥ वह सन्मति है, सन्मतिसारा है, समया, श्रुतांगिनी, सुज्ञानी, श्रुतदायज्ञी, सुकाव्या एवं काव्य मंथनी है। 41 पण्णा पण्णेसरी पोम्मा, पोम्मा-सरिस-हंसिणी। पण्णावणी पमाणी सा, पण्णदायिणि-पण्णधी ॥41॥ वह प्रज्ञा, प्रज्ञेश्वरी प्रज्ञा की पूर्णता है तभी तो पद्य सदृश हंसिनी कही जाती है। वह प्रज्ञापनी, प्रमाणी, प्रज्ञदायिनी एवं प्रज्ञधी भी है। 42 कव्वंगिणी-किदे कव्वे, कव्वायिणी गदे मए। कव्वुदहिं च पारत्थं, सहत्थ-पदणिमग्गए।42॥ यह काव्यांगिनी, काव्यायिनी कृत काव्य में प्रवेश मुझे काव्योदधि को शब्दार्थ में निमग्र कराती हुई उससे पार कराएगी ही। 43 कव्वाधरी कवीणं च कव्वे संग-पिचिट्ठिदा। सा अक्खरी सुदा णिच्चं, समावण्णी विदंसदे॥43 ॥ वह कवियों की काव्याधरी कवियों के काव्य-कला के साथ स्थित रहती है वह अक्षरी, समावर्णी श्रुता श्रुताक्षर भी दर्शाएगी। 44 वीणा-वादिणि-वादंगी, दुवालसंगि-अंगिणी। अंग-उवंग-सुत्तम्मि, चिट्ठिदा सम्मदी गणी॥44॥ वह वीणा वादिनी, वादांगी, द्वादशांगी, अंगिनी अंग-उपांग के सूत्र में सम्मदिगणी रूप (सन्मतिगणिनी रुप) स्थित है। 45 पेक्खिणी धवलंगी सा, पोत्थय-हत्थ-सारणी। वाहत्तरी-कलाणीदी, सिद्धंत-समयक्खरी॥45॥ वह प्रेक्षिणी, धवलांगी, सारभूत पुस्तक के हाथों वाली वाहत्तरि (72 कला) नीति, सिद्धान्ता एवं समयाक्षरी है। 30 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy