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________________ 11 जिदस्स अरि-सेण्णाए, सुसेणा-संभवो जगे। जितारि-धण्ण-धण्णो हु, मगसिरस्स पुण्णिमा॥11॥ मगसिर नक्षत्र की पूर्णिमा एवं राजा जितारि अति धन्य तब हुए जब सुषेणा से संभव हुए। सो ठीक है जगत में सैन्य जीतने वाला जितारि हो सकता है पर जिसकी संगिनी रूपी सुषेणा हो तो कहना ही क्या है? 12 सिद्धत्था संवरो राया, अहिंणदण जाअए। णंद-सागेद-सागेदो, माह-सुक्को वि णंदए॥12॥ सिद्धार्था रानी और संवर राजा अभिनंदन के जन्म से आनंदित हुए। इससे माघशुक्ला और सम्पूर्ण साकेत आनंदित हुआ। 13 मंगो वि मंगलाए हु, मेहप्पह णिवेण सह। सुमुहं रदि-मंगिल्ले, सुमदी सुमदी पहू॥13॥ मेघप्रभ राजा के साथ मंगला को उमंग सुमुख एवं रति मंगला मयी होने पर सुमति से सुमति प्रभु हुए। 14 पउमाणाय पोम्माली, सुसीमा धरणी-धरे। पोम्मो पफुल्ल कोसंबे, कोसंबी-पुर-राजदे॥14॥ सुसीमा तो पद्मानन वाली पद्मा थी धरणीधर के अधर रस पान से अपने कोश (उदर) में पद्म धारण करती उसी के जन्में पद्म (पद्मप्रभु) कौशाम्बी नगरी की शोभा बढ़ाते हैं। 15 पुढवीसु-पदिढे हु, पासे आबद्ध उत्तमं। वाराणसी-सुपासेणं, सुपासो जग पुज्जगो॥15॥ पृथ्वी रानी और राजा सुप्रतिष्ठ उत्तम पार्श्व में आबद्ध हुए तब वाराणसी उस पास बद्ध से जग पूज्य सुपार्श्व बना सके। लच्छी लच्छी महादाणी, महासेणस्स पाधणी। चंद व्व चंदणाहं च, चएज्ज चंदचारुगं॥16॥
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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