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________________ 33 कंधे कंधणयमाण जणाण मग्गे । साहस्स- माणव-चरे बहु-भत्ति - सत्ती । एगेग एग-खण- डोल-णराण खंधे. पच्चास - साहस-जणा पथ- पुण्ण- पुण्ण ॥33॥ पचास हजार का जन समूह कुंजवन के पथ पर था । कोल्हापुर की लंबी (40 कि. मी.) यात्रा में हजारों लोग चल रहे थे । एक एक क्षण ही लोगों को प्राप्त हुआ डोल को कंधा देने का । .. 34 तं च्चियो हु मुणिराय - विसेस - अग्गे लच्छी जिणो वि मयणा य णिदेसगा हु । बाला पबुद्ध-मुणि-संत-जणा हु सव्वे सुज्जस्स- अत्थ सह दंस - इणं च सुज्जं ॥34॥ उस अंतिम क्षणों के निर्देशक आचार्य निश्चयसागर, लक्ष्मीसेन एवं जिनसेन भट्टारक तथा ब्रहचारिणी मैनाबाई हुई। बाल वृद्ध युवा संत जनों ने उस सूर्य के साथ इस सूर्य का भी अस्त देखा । 35 fret गदा गुरुविजोग-मिलाण - साहू पुप्फ व्व हीण - वसदीइ समत्थ- पाढं । कुव्वेंति आइरिय-वंदण- कज्ज-कज्जं अणे दिवे गणिवदे वि सुणीलसाहू ॥35॥ अनिद्रा गत, गुरुवियोग प्राप्त सभी साधु म्लान पुष्प की तरह गुरु वसतिका में आ जाते हैं। वे सभी समस्त पाठ, आचार्य वंदना आदि कार्य को संपन्न करते हैं, फिर दूसरे दिन आचार्य पद पर सुनीलसागर की घोषणा की जाती है। 36 कुंजे वणे य चउसंघ सु-किएज्ज-माणं अम्हाण आरिस मुणि त्थि सुणील सिंधू । पट्टाइधीस - पद - घोसि - सुणीलसाहुँ मुम्बइ छव्विस दिसंबर उच्च ठाणं ॥36॥ 26 दिसंबर सन् 2010 में उच्च पद पर प्रतिष्ठित होते हैं। कुंजवन में स्थित चतुर्विध संघ स्वीकार करता है कि हमारे आचार्य सुनीलसागर हैं। उधर मुंबई में स्थित आचार्य श्री सुनीलसागरजी को पट्टाधीश पद प्रदान कर उच्चासन दिया जाता है। सम्मदि सम्भवो :: 263
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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