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________________ साविण्ण-पुण्णिम तिहिं पहु-सेययंसं मोक्खं च सोलह-दिवे बहु अच्चणम्हि॥39॥ इस कुंजवन क्षेत्र में पन्द्रह अगस्त को राष्ट्रध्वज फहराकर गणमान्य जनों के मध्य बहुमान दिया गया 16 अगस्त को श्रावणी पूर्णिमा तिथि को श्रेयांसप्रभु को मोक्ष दिवस अर्चन में संघ अग्रसर रहा। . 40 वच्छल्लदिण्ण-अणुरक्खग-रक्खसुत्तं रटे समाज-परिवार जणेसु पेम्मो। एगत्त-सम्म विणु णत्थि मुणेज्ज सव्वे एगे सदे तयदिवे गणि आदि जम्मे॥10॥ 143वां आचार्य आदिसागर के जन्म दिवस पर एकता का परिचय दें, इसके बिना वात्सल्य दिवस रक्षाबंधन के रक्षासूत्र के बंधन का कोई महत्व नहीं, इसी तरह राष्ट्र समाज और परिजनों में रक्षा के बिना प्रेम नहीं हो सकता है। 41 पज्जूसणो त्थि तव-पव्व विसुद्धि अप्पं एगारहं च उववास-मुणिंद अज्जी। ते खुल्लि दिक्ख-समणा सुउमाल-सच्छी कप्पडुमो विहि-विहाण-इधेव जादो॥1॥ पर्युषण है तप का पर्व, आत्म विशुद्धि का पर्व। इस पर्व पर आचार्य श्री, बहुत से साधु, आर्यिका, क्षुल्लिका आदि ग्यारह उपवास करते हैं। इसी भाद्रमास में तीन क्षुल्लिका दीक्षाएँ होती हैं। वे दीक्षार्थी श्रवणमति, सुकालमति एवं स्वास्थ्यमति नाम वाली हुई। (30 सितम्बर से 10 अक्टूबर तक) कल्पद्रुम विधान हुआ। 42 भत्ती सुपाढ किरिया तव भावणा वि णिव्वाण-उच्छव-महोविइधेव होदि। अट्ठण्हिगे हु परमे सिरि सिद्धचक्कं . तं संजमुच्छव-दिवं बहुधम्म-जुत्तो।42॥ 28 अक्टूबर 2008 के ठाठ में भक्ति, उत्तम पाठ (स्वाध्याय) क्रियाएँ भी सम्यक्, तप एवं भावना भी उत्तम हुई। 2535 वां महावीर निर्वाणोत्सव भी मनाया जाता है कुंजवन में। इसी स्थान पर श्री सिद्धचक्र मंडल विधान पूर्वक अष्टह्निका पर्व मनाया जाता है और आचार्य जी का 47वां संयमोत्सव (10 नवम्बर) को मनाया जाता है। सम्मदि सम्भवो :: 247
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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