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________________ इस प्रसंग पर सुबंद्य सागर एवं विमदसागर भी तपस्वी के दर्शन करते हैं । यहाँ स्थानकवासी के श्रुतमुनि, अक्षयमुनि और सौरभमुनि भी उपस्थित हुए। विधायक राजेन्द्र दर्डा एवं डी.बी. कासलीवाल जैसे प्रबुद्ध अनेक नागरिक भी आए। इस क्षेत्र में सिद्धान्तसागर भी सदा आगे बने रहे। 22 सत्तेव साहस- दुवे पद आइरिज्जं दा सुणील मुणिमयसुंदरं च । माहे हु सुक्क सतमी पणवीस जण्णे । सिद्धंत संत सम अग्ग-सुभं च साहू ॥ 22 ॥ सन् 2007 जनवरी 25 माघ शुक़ला सप्तमी पर सुनीलसागर, हेमसागर एवं सुंदरसागर मुनि से आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए। यहीं पर सिद्धान्त सागर, सुशान्तसागर समग्रसागर एवं शुभं सागर को मुनि बनाया गया । 23 खुल्लिक्क - दिक्खय- सुवीर - सुहा वि संती जाएज्ज सम्मदि गुरुस्स गुणाणुवादो । सोहग्ग सागर संक-उवज्झ लंके विम्मोच्च जाद-वसुगंदि सुणील वक्खं ॥23॥ यहाँ पर सुवीरमती, सुखदमती एवं शांतिमती माता जी क्षुल्लिकाएँ बनी। यहीं पर सौभाग्यसागर, शशांकसागर को उपाध्याय पद से अलंकृत किया गया। इसी के मध्य वसुनंदी श्रावकचार की व्याख्या सुनीलसागर की प्रस्तुति का विमोचन हुआ । सूरीविराग आगमणं 24 सूरी विराग - यि संघ - चवालि पिच्छी जुत्तो इमो वि मुणि दिक्ख पुरे हु अस्सिं । आसीस- दंसण-गुणं अणुपत्तएज्जा सज्झाय- सुत्त- अणुचिन्तण - लाह मुत्तं ॥24 ॥ आचार्य विरागसागर चवालीस पिच्छीयुक्त इस मुनिदिक्षा नगर में गुरुदर्शन करते, उनसे आशीष प्राप्त करते, फिर स्वाध्याय के सूत्र के अनुचिन्तन की लाभ रूप मुक्ताएँ प्राप्त करते हैं। 242 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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