SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यहाँ पर सेवा, अहिंसा एवं मनुजता पर विशेष चिन्तन चलता है। 2004 के जनवरी से अप्रैल तक विशेष आयोजन हुए। करावली में 15 मार्च को ऋषभ जयंती मनाई। फिर सलूंबर में संघ प्रवेश हुआ। 36 टोडा विराजिद इमो भरहे मिलावे रीछा पुरे सुविहि सागर संघ मेलो। सो वड्डमाण मुणि संजुग पारसोले जुण्णे मुणी सुविहि सूरि णरावलीए॥6॥ इधर टोड़ा में विराजित भरतसागर (गुरुभ्राता) का मिलाप होता, रीछा गांव में सुविधिसागर जी संघ सहित मिले। पारसोला में आचार्य वर्धमान सागर से मिलाप करते। फिर नरवाली में, सुविधिसागर को आचार्य पद से विभूषित करते हैं। खमेरा चाउम्मासो 37 दो साहसे इग-जुलाइ-चउद्दसिम्हि मंगल्लिगो चतुरमास-सुठावणं च। पुण्णिं गुरुं अवर वीर जयंति पच्छा पागस्स-पाइय-विमोयण-भावणाए॥37॥ सन् 2004 जुलाई 1 की चतुर्दशी पर मांगलिक चातुर्मास की स्थापना (खमेरा में) हुई। यहाँ गुरु पूर्णिमा, वीरशासन जयन्ती मनाई गयी। यहाँ पर प्राकृत में रचित भावणासारो का विमोचन हुआ। 38 धण्णा खमेर-मणुजा भरहिज्ज-णाणं पीढेण तं मुणि-सुणील-पगासएज्जा। सज्झेज्ज सो मरणकंडिग-गंथ कुव्वे छक्कं रसं च परिचाग विहिं मुणेज्जा॥38॥ धन्य है वे खमेरा के धन्या सेठ जिन्होंने मुनि सुनीलसागर की कृति जो भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित भावणासारो का विमोचन कराया। यहाँ यह संघ 'मरणकण्डिका' का स्वाध्याय का लाभ लेता और उसमें प्रतिपादित षट्रस त्याग विधि को समझते हैं। सम्मदि सम्भवो :: 227
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy