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________________ आगच्छदे ण कुणदे णिय-कम्म-सिंहो अम्हे कुणेज्जदि ण किंचि मुणेहि सिंहो॥69॥ घोष-झोपड़ी में सामायिक (गंगायां घोषः नर्मदा-तटे घोषः) अधिक नीर होने पर अन्य स्थान को प्राप्त हुए मुनीश। सिंह यहाँ जल पीने आता पर आया नहीं। सिंह अपना कर्म करता, मैं अपना कर्म कर रहा था। हम सिंह हैं इसलिए वह कुछ भी नहीं करता हैं। . 70 आपत्त-काल-गद-णाव ठिदे हु संघो आगच्छदे पदपहाण-पमग्ग-चत्तो। दोसा विराम करणं चरएज्जदे सो सिद्धो बरो त्थि वर-कूड खमेज्ज अम्हे॥70॥ आपदकाल में नाव का आश्रय किया जाता, पदप्रधान मार्ग छोड़ा कारण वश (जलमग्न होने पर), दोष शुद्धि के लिए दंड में स्थित होता है संघ सिद्धवर कूट सिद्धक्षेत्र है। यहाँ हम दोष कृत के लिए क्षमा मांगते हैं। 71 पायच्छिदं च उपवास किदं च संघे वे चक्कि कप्प दह-णेग मुणीण मुत्तिं । ठाणं च साणद-कुमार-सुरज्ज ठाणं णिव्वाण-ठाण-वर-सिद्ध-गुणाण वंदे॥71॥ प्रायश्चित किया उपवास पूर्वक। फिर यहाँ सिद्धगति को प्राप्त दो चक्री, दश कामदेव एवं अनेक मुनियों के मुक्ति स्थान को नमन करते हैं। यहाँ पर सनत्कुमार के राज्य स्थान एवं निर्वाण स्थान वाले सिद्धों के गुणों की वंदना करते हैं। णिव्वाणभत्तीए-भासिदा। रेवा-णइए तीरे, पच्छिम भायम्हि सिद्धवर कूडे। दो चक्की-दहकप्पे, आहुट्ठ य कोडि णिव्वुदे वंदे॥ 72 ति-दिवस पवास करि सिद्धवरे वड्डमाण सेट्ठचारि अमेय। पवोह पसत्थ मुणिवर गामे चाग-तव भूमी सणावदं ।।72॥ तीन दिन को प्रवास सिद्धवर कूट में करके संघ आचार्य वर्धमानसागर, सम्मदि सम्भवो :: 215
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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