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________________ अट्ठापदस्स पहुवंदण-दुक्करो हु केलास-पव्वद-सुठाण-सरंत-सम्मो॥63॥ संघ चिन्तन करता है कि अष्टापद पर जाना कठिन है। कैलाश पर्वत पर निर्वाण गत आदि प्रभु के स्थान को स्मरण करके आदिनाथ कूट पर पहुँचते ही विशाल चरणों को नमन करते हैं। 64 अट्ठादसं वयलिसं तयतिंस लक्खं वालीस-साहस-णवं च सदं पणं च। मुत्तिं च सीदल जिणिंद-पहत्त-वंदे। विज्जुव्वरादु सिहरादु पपत्त-मोक्खं ॥64॥ विद्युतवर कूट से मोक्षगत शीतल जिनेन्द्र आदि अठारह कोड़ाकोड़ी बयालीस करोड़ बत्तीस लाख, ब्यालीस हजार नौ सौ पाँच मुनियों को स्मरण करते हुए वंदन करते हैं। 65 कोडीइ कोडि-णववाहतरं च लक्खं बालीस-साहस-पणं सद-मुत्तिठाणं। कूडं धवल्ल-पहु-संभव णाध-ठाणं णिम्मेज्ज चक्किमघवेण इणं च कूडं।65॥ यह मघवा चक्री द्वारा निर्माण कराई गयी धवलकूट संभव नाथ की है। इस स्थान से नौ कोडाकोड़ी बहतर लाख-ब्यालीस हजार, पांच सौ मुनिराज निर्वाण को प्राप्त हुए। 66 कूडे सयंभु-गद-संघ-अणंत-णाहं कोडीइकोडि छयणव्व दुसत्तरं च। कोडिंच लक्ख सहसंसद-सत्त-सिद्ध। णिम्मेज्ज सो अविचलेण णिवेण अत्थ ॥6॥ संघ स्वयंभू कूट पर पहुंचा, यह अविचल राजा द्वारा निर्वाण कराई गयी। यहाँ से अनंतनाथ, छ्यानवे कोड़ाकोड़ी, सत्तर करोड़, सत्तर लाख, सत्तर हजार एवं सात सौ मुनिराज सिद्ध हुए। सम्मदि सम्भवो :: 173
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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