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________________ 56 णाटक्क-कूड-अरहस्स हु भाव-राए छिण्णाण-कोडि-उववास-फलप्पदाई। णिण्णाव-कोडि-लख-साहस-णोसए हु मोक्खागदा-मुणिवराण पणम्मएज्जा॥6॥ अरहनाथ की नाटक कूट है, जिसे भावदत्त राजा ने निर्मित कराया। यहाँ से निन्यानवें करोड़, निन्यानवें लाख, निन्यानवें हजार नौ सौ निन्यानवें मुनिवर मोक्ष गये। उन मुनिवरों के लिए संघ नमन करता हैं। 57 मल्लिस्स संबल-सुठाण-गदं मुणिंदं छिण्णाणवं च णमएज्ज तधेव वासं। सच्चेण संघ-चदु-सुंदर-राय-ठप्पं णम्मेज्ज सम्मदि गणी मुणिविंद सव्वे॥57 ॥ संघ, आचार्य सन्मतिसागर एवं सभी मुनिवृंद मल्लिप्रभु की संबल कूट पर छ्यानवें करोड़ मोक्षगत मुनियों को नमन करते हैं। उन्हें भावसहित नमन करने पर छ्यानवें करोड़ के उपवास का फल प्राप्त होता है। यह कूट सुंदरसेन द्वारा बनवाई गयी। यहाँ चतुर्विध संघ की यात्रा को सत्यसेन राजा प्राप्त होता है। 58 सेयंस-संकुल-सुकूड-छियाण-कोडी कोडी हु कोडिलख-साहस-बावणं च। पंचं सयं च वियलीस-मुणिंद-मोक्खं दत्तेण णिम्मिद-अणंद-सुसंघ-ठाणं58॥ संघ वरदत्त द्वारा निर्मित कराई गयी संकुल कूट का वंदन करते हैं। यहाँ से छ्यानवें कोड़ाकोड़ी, छ्यानवें करोड़, छ्यानवें लाख बानवें हजार पांच सौ ब्यालीस मोक्षगत मुनिराजों का स्मरण एवं वंदन करते हैं, यहाँ पर आनंदसेन राजा चतुर्विध संघ सहित दर्शनार्थ आया था। 59 कोडीइ-कोडि-णव-वाहतरं लखं च वे साहसं पणसदं च वियालिसं च। मोक्खं गदं च धवलादु णमेति पुष्फं कुंदप्पहेण णिमिदं फल-वास लक्खो॥59॥ सम्मदि सम्भवो :: 171
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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