SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सन्मति भगवान महावीर स्वामी की दिगम्बर श्रमण परंपरा के महान संत आचार्यश्री आदिसागरजी (अंकलीकर) के पट्टशिष्य हुए अठारह भाषाओं के ज्ञाता आचार्यश्री महावीरकीर्तिजी उन्होंने अपना उत्तराधिकारी बनाया तपस्वी समाट आचार्यश्री सन्मतिमागरजी गुरुदेव को। ___अद्भुत तप, त्यागमय साधक जीवन का आनंद लेने वाले उन दिगम्बर तपस्वी ने जीवन में दस हजार से ज्यादा निर्जल उपवास किये। जीवन के उत्तरार्द्ध में अन्न तथा दूध-दही, घी नमक और शक्कर आदि का त्यागकर भेदविज्ञान-आत्मज्ञान के बल पर एकान्तर उपवास करते हुए खड्गासन पूर्वक कठोर साधना की! जीवन के अन्तिम दश वर्षों में उन्होंने केवल मट्ठा व जल लेकर कठोर तपस्या की। संयमी जीवन के पचास वर्षों में पचास चातुर्मास देश के विभिन्न अंचलों में किए। 200 से अधिक दीक्षाएँ प्रदान की तथा हजारों व्रती बनाए। उत्तर प्रदेश के फफोतू (एटा) में माघ शुक्ला सप्तमी सन् 1938 को जन्म लेकर कुंजवन (कोल्हापुर) में समाधिमरण 24 दिसम्बर, 2010 तक की लम्बी यात्रा को 'सम्मदि सम्भवो' महाकाव्य में भलीभाँति गूंथा है राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त डॉ. उदयचंद्र जैन उदयपुर ने। प्राकृत भाषा के इस महाकाव्य का सभी रसास्वादन करेंगे, ऐसी मंगल मनीषा। -अचार्य सुनील सागर सन्मति सप्तमी, 3-2-2017, पन्द्रह
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy