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________________ तपस्वी सम्राट साधु के प्रति प्रभावित प्रवचनसार के सार को समझाते हैं । 60 सत्थाणुसार- विसदं च विवेयणं च दिक्खासारं विविह-गंथ-सु-अज्झएणं । सारस्सदस्स कचलुंच-सुगोट्ठि - आदिं पच्चाणवे फरवरी हु वि झोडवाडं ॥60 ॥ श्रेष्ठ शास्त्रानुसार विशद विवेचन, आचार्य आदिसागर की दीक्षा स्मृति, अनेक ग्रन्थों का अध्ययन सारस्वत सागर की मुनि दीक्षा, केशेलोंच एवं संगोष्ठी आदि के पश्चात् 1995 ( फरवरी 25) को संघ झोटवाड़ा को प्राप्त हुआ । 61 कितिं समाहि दिवसं गुरु सम्मदिस्स । - तवचाग- पभावणं च । जम्मं जयंति - आहार - चत्त- सरला सरला हु अज्जी पत्तेदि सम्मसमहिं इध आदि बिंबं ॥61॥ आ. महावीरकीर्ति का समाधि दिवस, गुरु सन्मति सागर की जन्म जयन्ति एवं तप त्याग की प्रभावना वाली सरलमना सरलमति आर्यिका यहाँ सम्यक् समाधि को प्राप्त होती है। यहाँ झोटवाड़ा में आ. आदिसागर अंकलीकर की प्रतिमा को भी स्थापित किया गया। 62 आगच्छदे हु अणुगाम अमेर - भागं संबेगे रणबिंबतला विणिग्गा । एगेव इंच - दुव फुट्ट - सुविंब-भत्तिं किच्चा जिणाहिसिच माणयथंभ सच्छं ॥62 ॥ संघ ग्रामानुग्राम विचरण करता हुआ आमेर अंचल को प्राप्त हुआ। इसके पश्चात् सांवलियाजी में रत्न - बिम्बों को तलघर से निकाला गया । यहाँ एक इंच से लेकर दो फुट के रत्नबिंबों का अभिषेक कर मानस्तंभ को भी स्वच्छ किया गया। 63 फागीजणेहि महमत्थहिसेग पुव्वं णाहुत्थि माणिग- वरो गुरुभत्त सव्वे । चेत्तेविदीय मणथंभ- जिणाण सिंच केसे हु लुंच सम- हुकुमेण देसो ॥63 ॥ सम्मदि सम्भवो :: 149
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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