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________________ इंदोर चाउम्मासो 31 दाहोद-पच्छ-अणुगाम भवंत-संघो इंदोर-खेत्त-गद-सागद-भव्व-रूवे। बालाइरिज्ज-णवए सह भत्ति जुत्ता आसप्फिलाल-गुरुणो सरणे समाहिं॥31॥ दाहोद के पश्चात् संघ ग्रामानुग्राम विचरण करता हुआ इंदौर आया जहाँ भव्य रूप में स्वागत हुआ। सन् 1990 में बालाचार्य योगीन्द्रसागर भी थे, जहाँ भक्ति ही भक्ति थी। यहाँ के श्रेष्ठी अशर्फीलाल गुरुचरण में समाधि को प्राप्त हुए। 32 सच्चं इणं गुरुवरो गुरुदाण-अग्गी धम्मीजणाण अणुपेरग-सम्म-दाणी। दिक्खादि-दाण-समए य समाहि-काले सेट्ठीण सावगजणाण गिहीण आणी ॥32॥ गुरुवर गुरुदान में अग्रणी थे यह सत्य है। वे धर्मीजनों, श्रेष्ठीजनों, श्रावकजनों एवं कुटुंबीजनों की आज्ञा पूर्वक दीक्षा या समाधि को सम्पन्न कराते थे। 33 अस्सिंच आदिमुणवस्स विसेस-सोहो जाएज्ज गंग-अभयो वि हजारि णाही। सो अक्क मादुसुद-सिद्धय-पाडिले हु गोडा सिवो पडुवरो बलबुद्धि-जुत्तो॥33॥ इस चातुर्मास में आचार्य आदिसागर (अंकलीकर) पर विशेष जानकारी प्राप्त हुई अभय गंगवाल, हजारीलाल दोषी एवं नाभिराय हेगड़े इसमें अग्रणी हुए। वे अक्का मातुश्री के सुत सिद्धगौडा पाटिल के लाल शिवगोड़ा अति बल बुद्धि युक्त थे। 34 सो कज्ज-सील-जणगस्स य मिच्चु जादे मातुं च भज्जणिय-मिच्चुगदं च पच्छा। संसार-सागर-विरत्त-भडारगेणं, सो खुल्लगो हवदि आदि-सुसाहणाए॥34॥ वे शिवगौड़ा अपने कार्य शील पिता, माता एवं भार्या की मृत्यु के पश्चात् सम्मदि सम्भवो :: 141
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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