SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सेट्ठी सुसावग-गणा बहुगाम गामी माहिंद णाण महदिक्ख पमाणि सव्वे ॥66॥ बाकल की दो दीक्षाएँ महानसागर और साधनसागर क्षुल्लक के रूप में हुई। कटनी में आचार्य सन्मतिसागर चारित्रचक्रवर्ती का 41वां (इकतालीसवाँ) जन्म उत्सव मनाया गया। इसमें पं पद्मकुमार, पं जगन्मोहनलाल एवं जमुनाप्रसाद जी थे। यहीं पर महेन्द्रसागर मुनि बने और क्षुल्लिका ज्ञानमति भी क्षुल्लिका बनी। श्रेष्ठीजन, अनेक गांवों के श्रावक जन एवं श्राविकाएँ इसकी साक्षी बने। 67 एगा ण छत्त अणुसासिद संति णेगा जाएज्ज वच्छ अरविंद सुदिक्ख णंदे। लुंचेदि केस उववास सहेव रोहे पुण्णे हु खुल्लग-गदो चरए पमाणे॥67॥ कटनी के शान्तिनिकेतन विद्यालय के छात्र एक नहीं, अनेक अनुशासित होते हैं। अरविंद वात्सल्यमूर्ति आचार्यश्री के वत्स बने। दीक्षा से आनंदित होते हैं, विरोध में भी अरविंद दृढ़ केशों का प्रथम दीक्षा से पूर्व केशलोंच करते, उपवास रखते। वे क्षुल्लक पूर्णसागर बनते और अपनी चर्या में प्रमाणित होते हैं। 68 कप्पूर कप्पुरगदो जध-रक्ख-णम्म धण्णो तुमं तणय जम्म फलप्पदाइं। कुव्वेज्ज तस्स विसणादु विमुत्त साहुँ पावं विणा णहि लिहेमि पमाण किंचि॥68॥ कपूरचंद्र (अरविंद के पिताश्री) के पैरों में जैसे ही आरक्षी (सिपाही) नत होता है, वैसे ही कपूर का कपूर उड़ जाता। वह सिपाही कहता इसका क्या अपराध है, व्यसनों से मुक्त पुत्र यदि साधु बनता है तो आप धन्य कहे जाओगे। आप उत्तम पुत्र के जन्म दाता कहलाओगे। इसलिए मैं रिपोर्ट नहीं लिखता हूँ। 69 आहार हेदुदिव संग मुणीस जादे तं अंतराय दरिसं कुण अंतरायं। बुड्डारदो अकलए गुरु रण्ण-मज्झे माहिस्स दंडि णवकार सरे हु संतो॥69॥ क्षुल्लक पूर्णसागर (पूर्वनाम अरविंद)आचार्य श्री के साथ आहारार्थ जाते हैं। 130 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy