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________________ दमोहखेत्ते पवेसो गेहं जिणं च अणुगामि दमोह खेत्तं एगो जणो वि इगबाल-चरंत-अग्गे। संघं च चत्त चरदे हु पलायभूदो एगा गिही हु जिणमंदिर संग अग्गी॥56॥ दमोह क्षेत्र के जिनालय की ओर अनुगामी संघ को एक व्यक्ति (वृद्ध व्यक्ति) और एक बालक छोड़कर यहाँ से दूर हो जाते हैं, तब एक गृहिणी जिन मंदिर के लिए अग्रणी होती हैं। 57 सत्थे वए पवयणे रदणं कुणेदि सुण्णेज्ज सावगगणाण मुणीस तुम्हे। जाणेदि तं मुणिवरं च अणाणजुत्तो पुज्जा इमे हुतुह पूजग किं मुणेहि॥57॥ शास्त्र प्रवजन सभा में एक व्यक्ति रत्नकरण्ड श्रावकाचार रखता और कहता भो मुनीष! हम लोगों के लिए इसे सुनाओ। वह उन मुनिवर को अज्ञान युक्त समझाता है। इस पर आचार्यश्री ने कहा-मुनि पूज्य हैं और आप सभी पूजक हो। क्या समझें? जबलपुर-वासो 58 पुज्जाण साहुमणुजाण सुसेव भावो एसिंच माण-बहुमाणजणाण दिट्ठी। गेहे समागदसिरिंण हु देहि तुम्हे जाबालि कोमलसिरी सुफलं पवासं॥8॥ ये पूज्य हैं, पूज्य साधुओं की सम्यक मान हो, इसके प्रति मान बहुमान की दृष्टि हो। गृह में समागत को श्री नहीं दे सकते हो तो श्री फल (बहुमान का निवेदन) तो प्रदान करते। इधर जाबालि-जबलपुर के सेठ-वर्षावास के लिए श्री फल चढ़ाते हैं। सम्मदि सम्भवो :: 127 .
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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