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________________ 49 पोम्मावदीय पडिबिंब फुडं च मुत्तिं कुव्वेंति जे अघ समक्ख मुणीस - भासे । अम्हे ण पंथ-पडिपंथ-पपण्ण बुज्झे माणं कुणे ण अवमाण कथं कुणेह ॥49 ॥ यहाँ पर पद्मावती के सुरम्य प्रतिबिंब जो नहीं मानते वे उसे मंदिर से हटा देते हैं। लोग आचार्य जी के पास यह सूचना देते हैं, तब आचार्य श्री पंथवाद से पृथक् अपने को रखते और समझाते यदि पद्मावती का मान नहीं कर सकते हो तो अपमान मत करो। सभी प्रज्ञों को महत्व दें । आइरिय-रद 50 आयार - णिट्ठमुणिराय - मुणी वि सव्वे वज्ज व्व वज्ज-मुदुए अदिवच्छलत्तं । पत्तो हु आइरिय सो रदणं सुसण्णं पत्तेज्ज दिक्ख अमिदं रिसहो पभासे ॥50॥ ‘वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमान्यपि' युक्त आचार निष्ठ मुनिराज एवं मुनिजन उस वात्सल्य को प्राप्त हुए जिसे आचार्यरत्न से विभूषित किया गया । यहीं बामोर में ब्राह्मण युवक अमितशर्मा तो ऋषभसागर बने । 51 बालाइरिज्ज इणमो परलोगगामी जोगिंदसागर - मुणी जण - जण्णणामी । जज्ज बारि-समूह- सुसागदं च पच्छा दुलारपुरए वि पवज्ज बुद्धी ॥51॥ बालाचार्य योगीन्द्र सागर परलोक गामी हो गये (जो ऋषभसागर के पश्चात् इस नाम को प्राप्त हुए। जन मानस में प्रिय । बामोर का जन समाज स्वागत को जब प्राप्त हुआ। इसके पश्चात् संघ लार (टीकमगढ़) पहुँचा, जहाँ बुद्धिसागर क्षुल्लक बने । बडगामादु दोणगिरी 52 गहु गपुर गाम चरंत संघो गामे बडे दिधसाण तडे ठिदो जो । सम्मदि सम्भवो :: 125
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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