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________________ तित्थयराणं जम्मभूमी अउज्झा 39 तित्थेसराण उसा जिद णंदणं च हाण णाह सुमदीय अणतणाहं । सागेद जम्मथलि रम्म इणं च खेत्तं बंही सुंदरिय चक्कि - बलं च रामं ॥39॥ तीर्थेश्वरों का क्षेत्र अयोध्या है। यहाँ ऋषभ, अजित, अभिनंदन सुमति प्रभु, अनंत नाथ जन्म को प्राप्त हुए हैं । यहीं ब्राम्ही सुंदरी कलाविद होती हैं और राम ने यही मर्यादा स्थापित की। भरत का राजतंत्र चक्रवर्ती पना यहीं था । 40 तत्तो विहारगद संघ - इगेव सुण्णं ठाणं च पत्त तध विच्छुगये हु विच्छू । झाण- सूरि- दुह दिण्ण ण आगदा वि । पच्छा चरेंति विरमेंति णिए हु झाणे ॥40॥ वहाँ से विहार कर संघ एक शून्य स्थान को प्राप्त हुआ । जहाँ विच्छू ही विच्छू थे। वे ध्यान युक्त सूरि के ध्यान में विघ्न नहीं डालते । वे शीघ्र अपने स्थान को प्राप्त हो जाते हैं । कुट्ठगदो आगदस्स 41 झाणत्थ सूरि तवसे अदिलीण जादो तत्थेव कुट्टिमणुओ गुरुपादमूले। आगच्छदे हु जलठाण-लुलुंठजाए सादं दिसणमेदि गुरुं च पादे ॥41 ॥ जिधर ध्यानस्थ सूरि तप में लीन थे, उधर एक कुष्ठरोगी मनुष्य गुरुपाद मूल में आ जाता है। वह उनके शरीर शुद्धि के स्थान पर लोट जाता उससे उसे साता प्राप्त होती है। वह गुरु के पैरों को नमन करता है । 42 जे सावगा परिसुर्णेति सुसड्ढजुत्ता पुण्णप्पताव- तव सत्ति-गुणं पसंसे। 122 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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