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________________ दोसी देवदत्त घरि छइ । चंद्रप्रभ जिन स्वामि । सततालीस जिनवर । पूजतां शिव ठाम । सोनी रामा घरि छइ । पास जिणंद जुहारउ ।। अढारइ जिनवर पूजी। भवभय वारउ ॥ ६६ ॥ बिंब रयणमइ वंदु । तिहां छइ एक ज सार । बइ पट्ट अनोपम । दीठइ सवि सुखकार । गोदडनइ पाटकि । पूजउ ऋषभ दयाल । ..जिन सरिषा वरणई । पेषउ रंग रशाल ॥ ६७ ॥ . एकसउ चिउंऊत्तरि । प्रणमंता हुइ प्रेम । विसा थावर घरि छइ । रिषभ करइ ते षेम । चौदह जिण पूज्या । तिहां निज उत्तम भावि । दोसी हीरजी देहरासरि । हडइ हरषई आवि ॥६८।। पासह जिण निरष्या। तिहां वली ऊलट आणि । - उदयकरणनइ घरि । ऋषभ जिन अमृत वाणि।। .: बावन छइ जिनवर । पूजउ हरषि अपार । जिनवर गुण गातां । सुख पामउ बहु वार ॥ ६९॥ ॥ कुंकुम तिलक ए ढाल ॥ १९ ॥ पाटकि नाथा सहानइं आवउ । शांति जिणेसर भावउ । एकसउ नवागउं देव । हरषिउं हइडउं हेव ॥ ७० ॥
SR No.032391
Book TitlePatan Chaitya Pparipati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherHansvijay Jain Free Library
Publication Year1926
Total Pages130
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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