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________________ अचिरानंदन जिहां अछइ । दस जिणंद उदार रे। शांति देहरइ ते जुहारीइ । सात बिंब छइ सार रे॥२५ गावु०॥ विमलसी सेठिनइं घरि वली। आठ बिंब मन मोहइ रे । रयणमय जिनवर बिंब तिहां। तेजई अतिघणुं सोहइ रे।।२६मा० पारषि पुंआ घरि भणउं । ऋषभजिनंद दयाल रे। रजतमय बिंब ज च्यारि अछइ । इग्यार जिन मयाल रे॥२७गा० घेतलवसहीपासजिन् । दीपइ पूनिमचंद रे। बिसय सतालीसबिंब नमु । पेखिला परमानंद रे ॥२८॥गावु०॥ पूजा कीजइ भावसिउ । जिनवर अंगि सुचंग रं। सूरीआभइ जिम पूजीआ । सोहमइ मनरंगि रे॥ २९॥ गावु०॥ ॥धन२ साधु जे बनि रहइ ए ढाल ॥ १५॥ पाटक लटकण आवीआ। दोसी गपू घरि । अजित इग्यार पडिमा वली। अरचु पूजु सुपरि ॥३०॥ मुणि २ भवियण पाणीआ । लाधउ जिनधर्म । पूजा भावना भावीइ । ए कहीउ मर्म ॥ आंकणी ॥ सहा वाछा घरि हुँ भणुं । चंद्रप्रभ स्वामी । एकावन जिनवर निरपीआ । छ रयणमय पामो ॥३१ सु०॥ लालजी घरि सुंदरू । संभव जिन देव । प्राणउं बिंब तिहां दीठला । कीजइ जिनसेव ॥ ३२ सु०॥
SR No.032391
Book TitlePatan Chaitya Pparipati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherHansvijay Jain Free Library
Publication Year1926
Total Pages130
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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