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॥वीर-जिणेसरचरज० ए ढाल ॥१॥ कीका पारषि देहरासरि ए । आव्या मनरंगिई। वंदी प्रतिमा पंच तिहां ऋषभादिक चंगइ, देहरइ कोका पासनाह । भेटया जिन होइ । शत ऊपरि सात्रीस तिहां । काउसगीआ दोइ ॥ १३ ॥ दोसी श्रीवंत घरि अछइ ए। वासुपूज्य जिर्णद । इकसठि जिन बीजा अछइ ए । दीपइ दिणंद । पाटक खेत्रपालनइ ए। जिन शीतलनाथ । सतसठि शत ऊपरि वली ए । भेटई सनाथ ॥ १४ ॥ पारिषि जगू पाडलइ ए । नेमिपतिमा जाण। वे बिंब अवर अछइ ए । भवी मनि आणउ । जयवंतसेठि-देहरासरि ए। शांति पडिमा जोई। प्रणमंतां ते हृदयहेजि । सवहाँ सुख होई ॥ १५ ॥ एकादश छइ अवर बिंब । रयणमय इक सार। षारी वावई ऋषभजी ए। जिन पडिमा च्यारि। गौतम गणहर दोइ बिंब । बीजी पारीवावि । सिद्धत्थनंदन भेटीआ ए । तेर प्रतिमा भावि ॥१६॥
॥तउचडीउ घणमाण. ए ढाल ॥२॥ नागमढई हवि आवीआ ए। दैठा नेमि जिणंद तु। प्रतिमा नव तिहां दीपती ए। अभिनव जाणि दिगंद तु॥१७॥