SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६७ ॥वीर-जिणेसरचरज० ए ढाल ॥१॥ कीका पारषि देहरासरि ए । आव्या मनरंगिई। वंदी प्रतिमा पंच तिहां ऋषभादिक चंगइ, देहरइ कोका पासनाह । भेटया जिन होइ । शत ऊपरि सात्रीस तिहां । काउसगीआ दोइ ॥ १३ ॥ दोसी श्रीवंत घरि अछइ ए। वासुपूज्य जिर्णद । इकसठि जिन बीजा अछइ ए । दीपइ दिणंद । पाटक खेत्रपालनइ ए। जिन शीतलनाथ । सतसठि शत ऊपरि वली ए । भेटई सनाथ ॥ १४ ॥ पारिषि जगू पाडलइ ए । नेमिपतिमा जाण। वे बिंब अवर अछइ ए । भवी मनि आणउ । जयवंतसेठि-देहरासरि ए। शांति पडिमा जोई। प्रणमंतां ते हृदयहेजि । सवहाँ सुख होई ॥ १५ ॥ एकादश छइ अवर बिंब । रयणमय इक सार। षारी वावई ऋषभजी ए। जिन पडिमा च्यारि। गौतम गणहर दोइ बिंब । बीजी पारीवावि । सिद्धत्थनंदन भेटीआ ए । तेर प्रतिमा भावि ॥१६॥ ॥तउचडीउ घणमाण. ए ढाल ॥२॥ नागमढई हवि आवीआ ए। दैठा नेमि जिणंद तु। प्रतिमा नव तिहां दीपती ए। अभिनव जाणि दिगंद तु॥१७॥
SR No.032391
Book TitlePatan Chaitya Pparipati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherHansvijay Jain Free Library
Publication Year1926
Total Pages130
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy