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________________ ३३ उपर जणावेल ९५ जिनप्रासाद नाम ठामनी साथे परिवाडीमां जणावी दीघां छे, बोज़ां घरमंदिरो जेने घणा खरा परिवाडीकरो 'देहरासर' ए नामथी ओळखावें छे तेनी संख्या : ५०० पांचसोनी जंणावी ने तेमां १३००० तेर हजार प्रतिमाओ होवानुं जणावे छे. प्रथम १३५७३ प संख्या पण जणावेली छे. परिवाडीकारना कहेवाना आशय पवी होय के 'पाटणम ९५ म्होटां अने ५०० न्हानां जिनमंदिरो हतां अने तेमां अनुक्रमे १३५७३ अने १३००० प्रतिमाओ हती.' परंतु आषो अर्थ करवा जतां विचार प आवे छे के सं. १६४८ मां पाटणमां न्हानां म्होटां २०० मंदिरों अने ८३६५ प्रतिमाओ हती तेना स्थानमा सं. १७२९ मां५९५ मंदिशे अने २६५७३ प्रतिमाओनुं होवुं मन कबूल करतुं नथी, ८० वर्षमां उपर प्रमाणे बधारो थवो शक्य होय तेम लागतुं नथी, कदाच एम होइ शके के प्रथमनी ज १३५७३ प संख्या बीजी वेला सामान्यपणे तेर हजार तरीके लखी होय अने देहरासरानी ५०० प संख्या पूर्वे जणावेल ९५ त्यो अने घरमंदिरो सबै भेलां गणीने जणावी होय तो बनवा जोग छे, अने तेमज होवुं जोइये, कारणके परिवाडीकारे पोते पण सर्व घरमंदिरो गण्यां नथी पण तेमणे 'श्रबणे सुण्यां' छे, मतलब के घर मंदिरोनी संख्या चोकस नथी, छतां पटलं तो नक्की छे के १६४८ पछी पाटणमां घरमंदिरो अने प्रतिमाओनो खासो भलो वधारो थयो हतो. सं. १७२९ थी मांडीने सं. १९६७ ना वर्षपर्यन्त पाटण
SR No.032391
Book TitlePatan Chaitya Pparipati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherHansvijay Jain Free Library
Publication Year1926
Total Pages130
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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