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________________ आनी संख्या तारवीने तेनी जोड देतां जे संख्या आवे छे, तेनो साथे परिवाडीकारे जणावेली पाटणनी प्रतिमासंख्या मलती नथो. तेनु कारण पण लेखकनी संख्याप्रतिपादक पद्धतिर्नु अनिश्चितपणुंज होह शके,वली बे चैत्योनी प्रतिमा. संख्या परिवाडोसारे मुहल जणावी नथी, तेथी पण तेमनी संख्या आपणी तारवेली संख्या साथे नहिं मलती हाय तो बनवा जोग छे. परिवाडीना परिशिष्टरूपे जणावेली १२ गामोनो चैत्यपरिबाडीमा रूपपुरनी चैत्यसंख्या ध्यान खेचनारी छे, तेमां कुले १० जिनमंदिर अने ३६७ जेटली प्रतिमा जणावी छे. रूपपुर पूर्व केवडे म्हॉटुं होवु जोइये ते वात आ वर्णन उपरथी जणाइ आवे छे. जे वेला रूपपुरनी ए दशा हती, ते वखते चाणसमामा मात्र एक मंदिर अने ३४ प्रतिमाओ हती. आजे रूपपुरमा मात्र एक मंदिर २९ प्रतिमा छे अने श्रावकोनां ३-४ घणच्यार घर छे, ज्यारे चाणसमामां ८-१० मंदिर जेवटुं विशाल चैत्य छे, अने अनेक प्रतिमाओ छे, जैनवसति पण घणी छे. एम लागे छे के रूपपुरनी वसति तूटवाथी ज चाणसमानी विशेष आबादी थइ हशे कालान्तरे शहेरनां गाम अने गामनां शहेर केवी रोते बने छ, तेनो आ प्रत्यक्ष पूरावो छ, परिवाडीकारे कोइ ठेकाणे ए वातनो खुलासो नथी कों के पोते जे प्रतिमासंख्या जणावे छे ते केवल पाषाणमय प्रतिमाओनी छे के धातु, पाषाण अने रत्न विगेरे
SR No.032391
Book TitlePatan Chaitya Pparipati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherHansvijay Jain Free Library
Publication Year1926
Total Pages130
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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