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________________ भ्रंश अने लोकभाषामां लखायेला उपर्युक्त लक्षणयाला स्तवनोनी कोटिना अनेक प्रबन्धो आजे दृष्टिगोचर थाय छे. चैत्यपरिपाटी स्तवनोनुं लक्षण ए थया करें छे के कोइ पण गाम के नगरनां यात्राना समयमा क्रमवार आवतां देहरासरोनां नाम, ते ते वासोनां नाम, तेमा रहेली जिनप्रतिमाओनी संख्या विगेरे जणाधवा पूर्वक महिमा वर्णन करवू अने तेनी स्तुति करवी. विजयसेन. सूरिनो रेवंतगिरिरासो', हेमहंसगणिनी गिरिनारचैत्यपरिवाडी,२ सिद्वपुर चैत्य परिवाडी,३ नगागणिनी जा. लोरचैत्यपरिवाडी४ विगेरे संख्याबन्ध चैत्यपरिवाडिआ उपर जगावेल लक्षणवाली आजे विद्यमानता धरावे १ आ रासो प्राचीन गूजराती भाषामा लखायेलो छे, एना कती विजयसेनसूरि नागेन्द्रगच्छमां प्रसिद्ध मंत्री वस्तुपालना समयमां अर्थात् विक्रमनी तेरमी सदीना उत्तरार्धमां थइ गया छे. वस्तुपालना संघ साथे गिरनारनी यात्राये गया ते समये तेमगे आ रास बनाव्यो हतो. २ हेमहंसगणि प्रसिद्ध आचार्य मुनिसुंदरसूरिना शिष्य हता, तेओ सोळमी सदीना प्रथम चरगमा विद्यमान हता, आरंभासध्धिवार्तिक, न्यायमञ्जूषा विगेरे अनेक विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थो एमगे बनाव्या छे. आ चैत्यपारेवाडी तेमगे क्यारे बनावी ते जगाव्यु नथी, पग सोळमी सदीनी शरुआतमा ज बनावी होवानो संभव छे. ___ ३ आ चैत्यपरिवाडीना कर्ता के समयनो पत्तो लाग्यो नथी, परिवाडी जूनी होवानो संभव छे. ४ आ चैत्यपरिवाडी सं. १६५१ ना भाद्रवा वदि ३ ने
SR No.032391
Book TitlePatan Chaitya Pparipati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherHansvijay Jain Free Library
Publication Year1926
Total Pages130
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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