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________________ २२ ॥तीर्थराज चैत्यपरिपाटी स्तवनं ॥ कर्ता. साधुचंद्र मुनि. प्रणमिय रिसह जिणंद पुंडरिक गणहर सहिय ॥ विरचिसु चैत्र प्रवाडि, संघह सरसी जिम विहिय ॥१॥ भास पहिलउ विक्कमपुर नयर, जिह सिरि नाभि मल्हार ॥ बीजइ जिणहरि बंदियइ ए, तिलसासुय सुविचार ॥२॥ सिरि ऊपशाह मंडणउ ए, सोमिय वोर जिणंदा । तिमरियपुरवर सुहकरण, पासनाह जगि चंद ॥ ३ ॥ भास जोधनयर सिरि कुंथुनाथ, विहिचेय मंडण ॥ पास संति बे वंदियह ए, दुह दाह विहंडण ॥ ४ ॥ गूढानयर सिरि कुंथुदेव, भवजलनिहितारण. ॥ बीजइ जिणहरि पूजीयइ ए, सीतल सुहकारग ॥ ५ ॥ वस्तु पास जिणवर पास जिणवरि, नयरि जालउरि, आदीसर पहु भेटियए, सयल सुख संपत्ति कारण; अचिरानंदण संति जिण, भविय लो। दुहतावचंदग । हरिकुल अंबर सहसकर, सामिय नेमिकुमार, धीर जिणेसर भवणगुरु, तिहुयण तारणहार ॥६॥
SR No.032391
Book TitlePatan Chaitya Pparipati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherHansvijay Jain Free Library
Publication Year1926
Total Pages130
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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