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________________ માં ચેલેંજ કરેલ, પણ આ તે ખરાખરીના ખેલ આવ્યા એટલે જરા વાતને મીજી રીતે ઢાળી મેલ્યા કે— ८८ भैया ! शास्त्रार्थ करना हो तो हमारी ना नहीं ! किंतु क्या कभी इन बातों का निर्णय आज तक हुआ है क्या ? वाद-विवादमें समय खराब करना ठीक नहीं, फिर भी यदि उनकी च्छा इहो तो हम तैयार है, किंतु मध्यस्थकी याद जरूरत है। हम ही आपस में एक दुसरे की समझ लेंगे उडी शास्त्रार्थनी बात ढीबी भुडी. बात સ્થાનકવાસી શ્રાવકોએ પણુ કહ્યું કે “ महाराज ! इन बतंगबाजी में क्या कल्याण हैं। आप अपनी बात सुनाओगे। वे अपनी बात सुनायेंगे ! किन्तु असलीयतमें क्या है ? वह तो ज्ञानी जाने ! षहले भी तो यहाँ इन संवेगी महाराजसे वाद-विवाद हुआ था એમ કરી શાસ્ત્રાની વાત પર ઠંડું પાણી રેડાયું. छेवटे आप श्रीसंघना भागेवाना "जैसी आपकी इच्छा "कही ला थर्म गया, पूज्यश्री पासे भावी अधी बात अरी. पूज्यश्रीये उह्युं डे– “ अपने को अब कोई बात चला करके नहीं कहनी है, अब शायद वे मूर्त्ति पूजाकी बात जोरदार नहीं छेडेगे, और यदि छेडेंगे तो अपने लिए जाहिर में बैठकर उनकी बातोंका जवाब देनेका क्षेत्र खुल्ला ही है ! कौन रोकेगा ! ही वातने ढीली भुडी हीधी. સ્થાનકવાસી સંતાએ પણ “ અહુ ટક્કર લેવા જેવી નથી, નહી' તા શાસ્ત્રના જાહેર પગલાથી ઉલટામાં આપણા ૧૯૪
SR No.032388
Book TitleSagarnu Zaverat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsagar
PublisherAgmoddharak Granthmala
Publication Year1980
Total Pages370
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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