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________________ meuminiumm.innamrumenormour CAMPARAN minatommon पूजयश्री विनती ४03-"बापजी सा. ! मांने आप सूना मुकीने पधार गया, बठे तो धणी विना खेत सूना सी दशा होइ रही है। बापजी ! मां पर दया लावो। खेतर तो परो। बिगडो ! कांइ करा आप अठाने पधार गया और ई मिथ्यात्वी लोंग खेतरने भेली रह्या ।। बापजी दया करो। पधारो वठने । આદિ ખૂબ આગ્રહભરી વિનંતી કરી. __ पूoयश्री युं - " आपकी बात सच्ची ! परंतु क्या हम हमेशा वर्हा बैठे रहे। यह तो संभव नहीं विना इच्छा के भी आग्रहवश कारणसर सात चौमासे तो किये ! साधुपनेकी मर्यादाका तो ख्याल रखना चाहिए हमको माहि श्री सपना मागेवानामे ४ह्यु -" आपकी बात सच्ची ! मां लोगांका स्वार्थ वास्ते तो आपने इं केवां नी, फायदो तो शासनरे ज हुवो और बीच-बीचमे आप पधार गया बहारला गावांने विचरवाने मी थोडा ही रोक्या? बापजी सा! दया करों अब ! मांकी तो शान बिगड जावेला ! शासन की जो शोभा आपने बढ़ाई है, उसमें भी काफी फरकः पडेला ! माह . न्यश्री पूच्यु -क्या बात है ? यह तो कहो ! श्री धना मागेवानाये युं - " बापजी ! दुढीयारा वडा पूज्यश्री अब के चौमासा बास्ते आई रहा है ! बणां लोगा इसी बात फैलाई है कि-सवेगी साधुओं ने उदयपुरमें उल्टा-सुल्टा प्रचार करके लोगों १८७
SR No.032388
Book TitleSagarnu Zaverat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsagar
PublisherAgmoddharak Granthmala
Publication Year1980
Total Pages370
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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