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________________ .000000000.0.000000000000000000 પરમાત્માના શાસનની દઢ પ્રતીતિ થાય, તેથી ઉદયપુર શ્રીસંઘને વાત કરી આગેવાને પાસે આગ્રહભરી વિનંતીને પત્ર લખાવેલ જેના ગર્ભિત-જવાબ રૂપે પૂજ્યશ્રી પર નીચે મુજબ જવાબ यावेत. "स्वस्ति श्री शैवा-देवदेव-पद्पयोजनि-युगलं, प्रणिपत्य मनसा संचिरतरार्थ साधुजातिरम्यमुदयपत्तननामकमिन्दिरानिलयं निगमवरमधिष्ठितेभ्य: सत्प्रतिष्तेिभ्यः प्रख्यातचिद्विलासेभ्यो विद्वज्जनप्रधानेभ्यो मुनिभ्यः श्रीमद् झबेराणांपतिभ्य इन्द्रप्रस्थात् मुनिश्चीमदानंदविजयादीनां वन्दनानि च भवतुतराम् । शमत्र, तत्राप्यस्तु अपरं च समाचार वंचना-पत्र आप को आयो, पढ के चित्तको आनंद हुआ . आपने जो दयानंदकी बाबत में लिखा ओ ठीक है, अब दयानंदाक क्या हाल है ? सो लिखनाजी। आगे आपके श्रावकोंकी विनति पोंची सो हमारी तर्फ से धर्मलाभ कहनाजी'. ' चिठी जो देर से लिखी गई है सो विहार होणे के सबब से, आगे यहां दील्हीमें ठाणे २० है सो दो तथा तीन रोजमें जयपुर तर्फ विहार करणेका है, सो आपको मालुम हो। ૧૫૩
SR No.032388
Book TitleSagarnu Zaverat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsagar
PublisherAgmoddharak Granthmala
Publication Year1980
Total Pages370
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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