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________________ तीसरा अध्याय हेमचन्द्र के बड़े भाई का पहले से ही वैराग्य था, परन्तु उप जमाने की यह तासीर थी कि छोटी उम्र के लडकों का विवाह बन्धन में जकड़ दिया जाता था । उनके बड़े भाई मणिलाल को भी इस बन्धन में बाँधा जा चुका था, परन्तु विधाता की इच्छा मणिभाई का सरलता से दीक्षा दिलाने की थी, और हेमचन्द्र के कठिनाइयों का सामना करवा के दीक्षा दिलाने की - वीर पुरुषका बिरुद दिलाने की थी । अतः विधाताने बड़े माई की अर्धागिनी का बीचमें ही दुनिया से उठा लिया। दूसरी कन्याएँ मणिभाई से ब्याह करने को तैयार थीं, परन्तु उन्होंने नहीं माना । पिताजी भी भीतर से दीक्षा दिलाने को तैयार थे, परन्तु तरका लीन समाज इतनी छोटी उम्र में दीक्षा के विरुद्ध था । पिताकी सम्मति भी कुछ नहीं कर सकती थी, इसलिए पिताने मध्यम मार्ग अपनाया । राजनगर की ओर I "बेटा मणिलाल ! वह मेरे ध्यान में है कि तुम्हारी संयम लेने की इच्छा है । मैं तुम्हारी भावना में विघ्न डालना नहीं चाहता। मेरी ऐसी इच्छा है कि तुम शासनका शोमित करे। । तुम अपने आत्म-कल्याण के पथ पर गमन करो, मैं तुम्हें अन्तरसे आशीर्वाद देता हूँ। मैं यहाँ तुम्हें संयम दिलाने की स्थिति में नहीं हूँ । समाज के भीषण नागपाश में से बाहर आना मेरे लिए कठिन है । इसलिए तुम अहमदाबाद जाओ । उधर अच्छे महात्मा पुरुषको खोज कर आत्माका कल्याण करना और शासन क शोमित करना ।"
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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