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________________ माममधरमरि त्याग-मार्ग तो लोहे के चने चबाने से भी अधिक कठिन है ! इस सीधे चढाव पर चढ़ना तुम्हारा काम नहीं ! तुम तो संसार में कुलदीपक के रूपमें शोभा पाने योग्य हो ! दीक्षा-फीक्षा अपना काम नहीं, जाओ मौज करो, आनन्द में रहो!....... हेमकी हार इसके बाद माताने शादी की जल्दी मचा दी । ज्योतिषी ब्राह्मणों को पुलाया। ज्योतिष के अनुसार मांगलिक दिन निश्चित किये। कुंकुमके छींटे देकर कुंकुम पत्रिकाएं भेजी गई ! अशोक के पत्तों के तोरण बांधे गये। धवल मंडप बमा, विजयस्तंभ रोपा गया! ठाट बाट से बारात चढ़ी कोकिलकंठी महिलाओंने मंगलगीत गाये। सब लोग मंडपमें आये। बारह वर्षका किशोर हेमू विवाह-वेदी पर बैठा। अमि की साक्षी में सप्तपदी का मंत्रोच्चार प्रारम्भ हुआ। वर वधू का हस्तमिलाप (पाणिग्रहण) हुआ। अनि की चार प्रदक्षिणाएँ करवा कर हेम को विवाह-सूत्र में बांध दिया गया। युग-प्रचलित बालविवाह की प्रथामें हेमू का होम हो गया! इतनी सारी भीड़ के सामने अकेला बेचारा क्या करे ! यह भी समयकी बलिहारी है, कि भविष्यमें जो आगमोद्धारक बनने के लिए जन्मा था उस महापुरूष को वारह वर्षकी कच्ची उम्र में ही बिना सोचे समझे उसकी इच्छाके विरुद्ध विवाह की बेड़ी पहना दी गई। सुखी परिवारों में तो छोटी उम्न में ब्वाह करना ऊँची खानदानी और प्रतिष्ठा का चिह माना जाता था ! राग में वैराग्य . जिस पुण्यवतीका हेमचन्द्र के साथ पाणिग्रहण हुआ था उस नववधू का नाम था माणेक ! वरवधू घर आये, तव माता यमुना की
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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