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________________ आगमधरसूरि मौन में मुनिराज वीर संवत् २४७६ का आरंभ हुआ । शरीर दिनबदिन क्षोण होने लगा । कर्म भी क्षीण होते गये । आत्मा उज्ज्वल होता गया । मनोबल दृढ होता गया । रोग की शक्ति उभरने लगी और गुरुदेव की समता पराकाष्ठा पर पहुँची । १७४ वैशाख सुदी ६ का दिन आया । पूज्य आगमेाद्धारकश्री का शरीर व्यथा से व्यथित होता गया और अन्तरात्मा जागृति में आ गया । किसीने पूछा- महोदय ! कैसी तबीयत है ? पूज्यश्रीने उत्तर दिया - पंचमी की छठ नहीं होगी । शिष्य इसका तत्त्व नहीं समझ सके, मात्र अर्थ ही समझे कि मनुष्य का जिस रेराज दुनिया से जाना होता है उसी रेराज जाता है । इस में परिवर्तन नहीं होता । आयुष्य की तिथि में कमी - बेशी नहीं की जा सकती । पूज्यश्रीने तो इस के बाद मौन व्रत ग्रहण कर लिया । सेवारत्न शिष्य सुश्रूषा में हर वक्त तत्पर थे । उन में भावी पट्ट धर आचार्य देवश्री माणिक्यसागरसूरिजी भी हाजिर थे। बाह्य शारीरिक सुश्रूषा में मुख्यतः पूज्य मुनिवर श्री गुणसागरजी महाराज तथा पू० मुनिवरश्री अरुणोदय सागरजी थे। सेवा में इन की भावना और जागृति अधिक थी, पू० आगमोद्धारकजी का आत्मिक सुश्रूषा की जरूरत ही कहाँ थी । वे स्वयं ही अपने भाव वैद्य थे । । अर्ध पद्मासनावस्थामें अनशन पू. आगमोद्धारकश्री ने वैशाख सुदी ५ से अर्धपद्मासनावस्था में बैठना शुरू किया । प्रतिलेखना, प्रतिक्रमणादि आवश्यक क्रियाओं में
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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