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________________ १६८ आगमधरसूरि जो आशंकाएँ थीं वे पुण्य-पुरुष के चरण पड़ने से हट गई। इस छोटे से गाव ने प्रतिष्ठा का निराला ही रंग रखा । यह बहुश्रुत पूज्य आगमोद्वारकजी का प्रभाव था। वहाँ से विहार कर बुहारी आदि गाव होते हुए चातुर्मास के लिए सूरत पधारे। ___ अप्रतिम प्रतिष्ठा सूरत का आगममदिर दिव्य विमान के समान सुशोभित था। तीर्थकर भगवानों की प्रतिष्ठा का समय आ पहुँचा। परम पूज्य पतितपावन शरणागतवत्सल आचार्य पुरंदर श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी महाराजश्री की गरिमामयी धर्म छाया में ताम्रपत्र-आगममदिर का प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ । . इस महोत्सवने पालीताणा के शिलोत्कीर्ण आगममदिर के महोत्सव की याद को ताज़ा कर दिया । सूरत के श्रेष्ठिवरों ने विपुल धनका सदव्यय कर अपूर्व उत्साह दिखाया था। पूज्य आगमोद्धारकरी से कुछ समय पूर्व वखारिया परिवार में धर्म की भावना उत्पन्न करनेवाले श्राद्धवर्य ठाकोरभाई दयाचंद मलजी की प्रेरणा से जिनधर्म प्राप्त किये हुए मित्र, क्षत्रियकुलभूषण श्री जेकिशनदास लल्लूभाई वखारिया, तथा जयतिलाल गणपतराम, और जेकिशनदास रणछोडदास के सुपुत्र कांतिभाई, अमृतभाई, फूलचंदभाई आदि-वखारिया परिवार ने उक्त ताम्रपत्र आगमम दिर में आत्मा के कल्याणार्थ धन का सुन्दर सद् व्यय किया था। सरत के इतिहास में वीर संवत् २४७४ का वर्ष और माघ सुदी
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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