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________________ ११० आगमधरसूरि है । ये लोग मुझे सीधी तरह धन नहीं देंगे । इन पर टैक्स लगाने से ही धन मिलेगा | टैक्स न देनेवालेको पर्वत की सीढ़ी पर कदम ही नहीं रखने दूँगा । पालीताणा शहरका मैं मालिक हूँ आखिर ।” इस राजाने धन के लाभ से सूचना प्रचारित की यात्री मुझे अर्ध- सुवर्णमुद्रा देगा, उसके बाद ही यात्रा "सबसे पहले कर सकेगा । " धर्म-विरोधी धर्मांध मुसलमान राजाओं ने आर्यो के तीर्थो की यात्रा करनेवाले यात्रियों पर टैक्स लगाया था जिसे 'जजिया' कहते थे । यह टैक्स मुसलमान राजाओं पर काला कलंक माना जाता था । बुद्धिमान बादशाह अकबर ने अपने पुरोगामियों के कलंक को धोने के लिए परमपूज्य आचार्य देव श्री विजयहीर सूरीश्वरजी महाराज उपदेश से 'जज़िया' उठा लिया था । परन्तु धनलोलुप पालीताणानरेश ने यह टैक्स फिर से शुरू करने की जो घोषणा की मुस्लिम बादशाहों ने हटा दिया था । जैन श्रावक संघों ने इस राजा के अन्यायपूर्ण टैक्स का नम्रता पूर्वक विरोध किया । श्रमण-संघ के नायक आचार्य देवों ने राजा का शान्ति पूर्वक बहुत बहुत समझाया। इस कार्य में पूज्य आगमेाद्धारकश्री का बहुत बड़ा हाथ था । आगमोद्धारकभी का समझाना 'क्षत्रियकुल भूषण राजाओं के वंश में उत्पन्न हे राजा ! यात्रियों पर टैक्स लगाना तुम्हें शोभा नहीं देता । तुम अपने पूर्वजों की कीर्ति को कलंकित न करे।। यह राज्य कोई बिरासत में मिली हुई
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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