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________________ “मागमधरसरि वासचूर्ण में खरे अखंड माती मिलाये थे तो कई भाग्यशालियोंने सोने चादी के फूल मिलाये थे। इस समय आगमोद्धारकजी चन्दन चूर्ण चर्चित ज्यानस्थ मूर्ति सहश दिखाई दे रहे थे। यह वासचूर्ण-निक्षेप विधि और प्रदक्षिणा-विधि तीन बार को गई। अन्य विधि-विधान पूर्ण होने पर पूज्यपाद आचार्य वर श्री कमल सूरीश्वरजी महाराजने वासचूर्ण हाथ में लेकर मंत्र पढ़ना आरंभ किया। पटांगन में सम्पूर्ण नीरवता छाई हुई थी। नामाभिधानपूर्वक पदअर्पण की मुख्य विधि शुरू हुई। पूज्य श्री अर्धनिमीलितनयन कुछ गुन गुना रहे थे । 'ॐ ह्रो' जैसे उच्चारणांका अस्पष्ट खयाल आता था । क्षणभरमें उनके नेत्र खुले। उन्होंने गंभीर ध्वनि में कहा- "आज से भापको आचार्य पदवी दी जाती है, और आपका नाम 'आचार्य श्री आनन्द सागर सूरि' रखा जाता है ।" यह विधि तीन बार की गई । तत्पश्चात् गुरुमंत्र देने की विधि शुरू हुई । आगमोद्धारक श्री के कान में गुरुमंत्र दिया गया। इस अवसर पर भाचार्यशेखर कमलसूरीश्वजी महाराज बहुत आनन्दित थे। सुयोग्य सुपात्र को गुरुमंत्र देनेका सौभाग्य प्राप्त करने के आध्यात्मिक आनन्द की रेखाएँ उनके मुख-मंडल पर उभर रही थी। शेष विधि करने के बाद उपवासका पच्चक्खान लिया। पद प्रदान विधि के बाद पूज्य आचार्य भगवंत श्री विजय कमल सूरीश्वरजी महाराज ने बोधमय आशीर्वचन कहे ।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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