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________________ ७९ आगमधरस्ति पू. आ. श्री शांतिसूरीश्वरजी, पू. भा. श्री मुनिसुन्दरसूरीश्वरजी, पृ. आ. श्री हीरविजयसूरीश्वरजी, पू. उपा. श्री धर्मसागरजी गणी, पू. उपा. श्री यशोविजयजी गणी, पू. उपा. श्री विनयविजयजी गणी तक न्यूनाधिक प्रमाण में वाचनाएँ चली। उसके बाद उत्तर गुणों में शिथिलता आई, यतिवर्ग का युग आया। इस युग में मंत्र और वैयक बढ़ा, वाचनाओं पर लक्ष नहीं रहा। सब अन्धकार की ओर घिसटने लगे। वाचना गई, ज्ञान गया और परंपरापद्धति घटी। पुनः स्थापना विक्रम संवत् १९७१ में पू. आगमाद्धारकरी ने उक्त परंपरा की स्मृति कर उसकी पुनः स्थापना की-आगमवाचनाओं का प्रारंभ किया। . अहमदाबाद के श्री संघने मुनि भगवतों को आगमवाचना का लाभ लेने की बिनती की। अनेक बुद्धिमान साधु महात्मा पधारे, विदुषी साध्विया पधारी, पूज्य आगमज्ञानदाता आगमाद्धारक श्री पधारे । श्रावक यह जानकर कि हमारी पुण्यभूमि पर आगम वासनाएँ होने का अपूर्व लाभ मिलेगा, आनंदित और कृतकृत्य हुए । पूज्य आगमोद्धारकरी हाथ में आगमकी प्रति लिए हुए पूर्वाभि मुख बिराजमान होते हैं, तीन और साधु-साध्वी योग्य रीति से बैठे हैं, इन सब के हाथों में पाठ्य-आगम की प्रतिया हैं, श्रावक और श्राविकाएँ भी सुनने आए हुए हैं । जब मंगलाचरण बोल कर पूज्य आगमोद्धारकश्रीने "सुर्य मे आउस! तेण भगवया एवमक्खाय" कह कर वाचना का प्रारंभ किया.
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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